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(ग) जिन्हें प्राणशक्ति उपचार की जानकारी नहीं है अथवा जो प्रार्थना उपचार करना चाहते हैं, वे लोग रोगी के प्रभावित / पीड़ित अंग या ब्रह्मचक्र ( 11 ) या आज्ञा चक्र ( 9 ) पर हाथ रखें। इसके बाद में यह प्रार्थना करें:
(घ)
(ङ)
"हे दैवी करुणा से परिपूर्ण पिता, रोगी के उपचार के लिए
पूरे विश्वास के साथ मैं तुझे धन्यवाद देता हूं।"
इस विचार को हमेशा ध्यान में रखना जरूरी है कि केवल आप ही दैवी- - उपचार के माध्यम हैं। अपनी प्रार्थना करते रहें और हथेली के चक्रों (H) पर तब तक ध्यान केन्द्रित रखें जब तक आपको ऐसा नहीं लगता कि रोगी ठीक हो जाएगा। अपने आन्तरिक संज्ञान को अपने से जोड़ें। इलाज पूरा करने से पहले उपचारक और रोगी दोनों को ईश्वर का धन्यवाद देना चाहिए।
सामान्य रोगों का इलाज शीघ्र हो जाता है। गंभीर रोगों में आराम तो तेजी से हो जाता है लेकिन पूरी तरह से काम करने के लिए कई बार इलाज करने की आवश्यक्ता होती है। रोगी की आवश्यक्ता को देखते हुए उपचारक को सप्ताह में कई बार उपचार करना चाहिए ।
प्रार्थना उपचार एक उपचारक द्वारा कई रोगियों के समूह पर या कई उपचारकों द्वारा एक रोगी पर किया जा सकता है। इस बात का ध्यान रहे कि रोगी अधिक ऊर्जित न हो जाए ।
(४) प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अति ऊँचें चारित्र की आवश्यक्ता
कभी-कभी नकारात्मक कर्मों को दैवी मध्यस्थता द्वारा कम किया जा सकता है। इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अति ऊँचे चारित्र की आवश्यक्ता होती है। आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ मिलकर उपचारी ऊर्जा उपचारक के नकारात्मक व सभी गुणों को खोलकर बड़ा करती है। इसीलिए प्रतिदिन अपने मन में अपने को देखने, अपने दोषों की आलोचना, प्रायश्चित आदि द्वारा दूरकर, मन के स्वच्छीकरण की बहुत आवश्यक्ता होती है।
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