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________________ (ग) उपचार की कार्यप्रणाली (१) रोगी के चेहरे का दृश्यीकरण कीजिए। (२) रोगी की ओर मुस्कराइये अथवा स्नेहात्मक दया प्रेषित कीजिए। यह रोगी के साथ तालमेल बैठाने और ग्रहणशीलता को बढ़ाने के लिए है। (३) मन के द्वारा (telepathically) रोगी की भौतिक उपचेतनात्मक बुद्धि को निदेश दीजिए कि उसे क्या करना है और उसे प्रतीक्षित अन्त के परिणाम को प्रकट करने के लिए निदेश करिए। यह निदेश टेप पर रिकार्ड किये जा सकते हैं, जिनको जब तक आवश्यक्ता हो, रोगी दिन में कई बार सुन सकता है। (४) इस प्रक्रिया को जब तक आवश्यकता हो दोहराएं। निदेशात्मक उपचार की आवृति स्थिति पर निर्भर करती है। (घ) प्राणशक्ति उपचार में मौखिक निदेशात्मक उपचार के सहयोग लेने के उदाहरण:(१) चक्र के घनेपन (congestion) की सफाई EG द्वारा करके, तत्पश्चात् चक्र को मन द्वारा निदेशित कीजिए कि वह मुख्य तौर पर घड़ी की उल्टी दिशा में घूमे और रोगग्रस्त ऊर्जा को बाहर फैंक दे। एक बार प्रभावित चक्र का निसंक्रमण होने के बाद उसको अपने सामान्य तौर पर घूमने के लिए निदेशित कीजिए। (२) अति सक्रिय चक्रों का संकुचन एवम् कम सक्रिय चक्रों को सक्रियकरण मात्र इच्छाशक्ति द्वारा किया जा सकता है। किन्तु अच्छे परिणाम तब मिलेंगे जब प्रभावित चक्रों की पहले भली प्रकार सफाई और ऊर्जन कर दिया जाये। प्रभावित भाग की सफाई एवम् ऊर्जन प्रक्रियाओं में रोगी की भौतिक उपचेतनात्मक बुद्धि को यह निदेशित कीजिए कि वह (३)
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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