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अग्निकायिक (तेजस्कायिक)
माना कि L' =0-00 -0-1
अब L' का शलाकात्रियनिष्ठापन विधि की पद्धति के अनुसार विरलन राशि का विरलन कर और देय राशि का परस्पर गुणा तथा शेष महाशलाका राशि में से एक-एक कम करना। इस पद्धति से साढ़े तीन बार लोक का गुणा करने पर जो महाराशि उत्पन्न हो, उतना ही तेजस्कायिक जीवों का प्रमाण होता है।
(आधारः गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा २०४ )
मेरी अल्पबुद्धि में, इसका स्पष्टीकरण निम्नवत है। यदि यह गलत हो, तो विद्वजन इसको कृपया सुधार कर पढ़ें ।
(L)
यदि L1' = (L' )
(L3' ) = (L2')
(2)
{L'
"
—
, (L-2' ) = (L+')
}
Ln' = {L (n-1}}
{
(3.5L-1)
('. ')
I
{L' (n-1}
(3.5L-1)
तो L'3.5L =
तो अग्निकायिक जीवों की संख्या = L' 3.5L
वायुकायिक जीवों का प्रमाण = (1+
}
१.७५
- ) x जलकायिक जीवों का प्रमाण
a.L
अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीवों का प्रमाण = a. L प्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीवों का प्रमाण
= ( a. L ) x (अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति कायिक जीवों का प्रमाण)