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दशा में भला दिखने वाला व्यक्ति किसी अन्य समय में चोरी कर लेता है, अथवा हत्या कर देता है, वाहन चला लेता है, पैदल चल लेता है अथवा अन्य कोई कार्य / दुष्कार्य कर बैठता है। इसमें उसके दो या अधिक व्यक्तित्व भी हो सकते हैं। उसके एक समय में उस समय के अतिरिक्त, किसी दूसरे समय के व्यक्तित्व/व्यक्तित्वों का कोई ज्ञान/ भान भी नहीं रहता। (क) समस्त वायवी शरीर, प्रमुख चक्रों, bh, मस्तिष्क, आंखों, कानों, 8', रीढ़
की हड्डी, हाथों, बाहों आदि की गहन जांच करें। (ख) Gs ev (ग) C (समस्त सिर का क्षेत्र, समस्त मस्तिष्क, बाहें, पैर, रीढ़ की हड्डी, 11,
10, 9, bh, j, 8, 8', 7, 6, 5, 4, 3, 2,p, 1, a, e, H, h. k, S)
(घ) E ( 11, 10, 9, bh , j, 8, 8', 6, 4, 2, p, 1, a, e, H, h, k, S)
ev---H तथा 6 में प्रेषित प्राणशक्ति का स्थिरीकरण न करें। (ङ) E7 (70 के माध्यम से) ev -- इसको बड़ा होते हुए दृश्यीकृत करें। (च) E 3 ev, यदि आवश्यक हो तो, किन्तु सावधानी से। (छ) E 5 ev, यदि आवश्यक हो तो. किन्तु सावधानी से। (ज) चक्रों के ऊर्जन के समय कम सक्रिय चक्रों को बड़ा होकर सामान्य
होने तक दृश्यीकरण करें। (झ) चक्रों के ऊर्जन के समय. अधिक सक्रिय चक्रों को E ev के पश्चात
E IB द्वारा सामान्य होने तक संकुचित करिये। यदि 3 और 5 अधिक सक्रिय हों तो E IB द्वारा उनके सामान्य आकार (अर्थात अन्य मुख्य चक्रों के आकारों के आधे से लेकर दो-तिहाई तक) के होने तक
संकुचित करिए। (ञ) समस्त चक्रों की पुन: जांच करें और आवश्यक्तानुसार, पुनः यथोचित
C तथा E करें। (ट) नियमित रूप से सप्ताह में दो या तीन बार उपचार करिए।
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