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________________ चक्रों का उपचार करना चाहिए। यदि रोगी में अत्यधिक शारीरिक शक्ति है, तो उसके बाहों एवं पैरों के लघु चक्रों का विशेषतौर पर उपचार करना होता है। यदि रोग नया है या अभी विकसित हुआ है, तो उपचार आसान होगा और शीघ्र परिणाम प्राप्त होंगे। (क) शरीर की अच्छी तरह जांच करें। (ख) Gs ev (ग) C (9, 6, 1) ev~ E ev (1 के ऊर्जन के समय कुछ अधिक इच्छाशक्ति करिए। निम्न चक्र प्रायः ev के प्रति अग्राह्य होते हैं।) (म, 03: F (9.5, 3, 1; ... (इन चक्रों को लगभग ढाई इंच के आकार तक संकुचन करने के लिए)- यदि संकुचन ठीक प्रकार हो गया, तो रोगी शांत हो जाएगा। जो व्यक्ति रोगी को रोके रखे होते हैं, उन्हें महसूस होगा कि रोगी अब नम्र पड़ गया है और अति शक्तिवान अथवा हिंसात्मक नहीं रहा। (ङ) 7 evI E7 (7b के माध्यम से) ev- E7 के समय 7 को सक्रिय एवम् बड़ा होते हुए दृश्यीकरण करें। (च) C (11, bh) ev IE ev (छ) C 10 eVIE ev (ज) यदि रोगी विचित्र भद्दी आवाजें सुनता है, तो C(कान के चक्र) evi E eV (झ) यदि रोगी काफी हिंसात्मक है और बहुत शक्तिशाली है, तो C (8, 8, 4, 2, a, e, H, h, k, s) evi Fev - H तथा 5 में प्रेषित प्राणशक्ति का स्थिरीकरण न करें। जो ज्यादा हिंसात्मक नहीं है, उनका उपचार सप्ताह में अनेक बार करिए। जो बहुत ज्यादा हिंसात्मक रोगी हैं, उनका उपचार अगले कई दिनों तक दिन में अनेक बार करिए और बाद में रोगी की प्रतिक्रिया देखकर उपचार की गति में उचित परिवर्तन कर लीजिए।
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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