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________________ (छ) C7 evE (7b के माध्यम से) ev - E 7 के दौरान, इस चक्र को बड़ा होते हुए दृश्यीकृत करें। यह आन्तरिक शांति के लिए है। (ज) c 11 ev IE ev (झ) c9ev IE ev-- (यह रोगी की इच्छाशक्ति को बढ़ाने के लिए) (अ) 1 की पुनः जांच करें तथा पुनः E 1 IR (ट) रोगी को मनोवैज्ञानिक परामर्श दीजिए। उसको धीरे-धीरे और मृदुता से मान कराएं कि उसका नकारात्मक प्रवृत्ति, विचार एवम् संवेदन ही समस्या की कर्ता हैं अथवा समस्या को बढ़ा रहे हैं। अन्य व्यक्ति/व्यक्तियों का भी उपचार करना पड़ सकता है, जिनके कारण समस्या हो। रोग की तीव्रता और रोगी की प्रतिक्रिया को ध्यान में रखकर, सप्ताह में कम से कम दो बार उपचार करिये। अगले कुछ महीनों तक रोगी पर निरीक्षण दृष्टि रखें। यदि सम्भव हो सके तो रोगी के सम्बन्धियों एवम् घनिष्ठ मित्रों को रोगी पर गहन दृष्टि रखने को कहिये। (ड) जब रोगी द्वि हृदय पर ध्यान-चिन्तन को सीखने के लायक समर्थ हो जाये, तो उसको यह ध्यान-चिन्तन सिखाइये ओर उसको प्रतिदिन करने के लिए निर्देशित करिये। उसको अपनी सकारात्मक स्व-छवि बनाना भी सिखाइये। (१८) हिंसक रोगी- Violent Patients अधिक हिंसात्मक रोगियों के अधिकतर प्रमुख चक्रों का उपचार करना पडता है। बाहों और पैरों के लघु चक्रों का भी उपचार करना पड़ता है। उसके दायवी शरीर हिंसात्मक नकारात्मक परजीवियों से भरे पड़े होते हैं। 9, 6, 3 और 1 अधिक सक्रिय होते हैं। इनमें छेद होते हैं और कई नकारात्मक परजीवी होते हैं। 7 और 10 पर आंशिक रूप से खालीपन होता है और यह कम सक्रिय होते हैं। 6, 9, 11 में स्थित संग्रहित क्रोध और संदेहात्मक विचार और संवेदन, जो नकारात्मक सोच के आकारों में रहते हैं, उनको साफ करना होता है। यदि रोगी विचित्र भद्दी आवाजें सुनता है, तो उसके कान के . . 4.३८८
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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