SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 859
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अतिरिक्त यह और अच्छा रहेगा यदि उपचार से ठीक पूर्व, रोगी को पांच ग्राम चीन की अथवा कोरियन जिनसँग (Ginseng ) कैप्सूल दी जाये। इन कैपस्यूल में काफी मात्रा में कृत्रिम ऊर्जा (Synthetic Ki होती है, जिसका सक्रिय करने एवम् ऊर्जन करने का प्रभाव पड़ता है। रोगी की उम्र तथा प्रतिक्रिया के हिसाब से यह मात्रा बढ़ाई या घटाई जा सकती है। जिनसैंग का वर्णन अध्याय ३२ में दिया गया है। ( १७ ) आत्महत्या की प्रवृत्तियां - Suicidal Tendencies यदि रोगी की जात्महत्या करने की प्रवृत्ति हो, तो उसका 1 पर खालीपन होता है एवम् वह कम सक्रिय होता है। उसका आकार दो इंच या उससे भी कम होता है। यह चक्र स्व- जीवित रहने विशेष कर विषम परिस्थितियों में एवम् जीवित रहने की आन्तरिक भावना (self-survival or instinct of self survival) तथा स्व-संरक्षण (self- presurvation) का केन्द्र होता है। उपचार में इस चक्र को सक्रिय करना होता है। 6 अधिक सक्रिय होता है, इसलिए उसको संकुचित करना होता है। इसके अलावा 7 को भी आन्तरिक शांति के लिए सक्रिय किया जाता है। (क) रोगी से साक्षात्कार कीजिए । (ख) सभी प्रमुख चक्रों की जांच कीजिए । (ग) GS ev (घ) C 1/ E' IR -- E के समय इसको बड़ा लगभग चार इंच के आकार का, करने की इच्छाशक्ति कीजिए । E 1 अत्यधिक महत्वपूर्ण है। (ङ) C 6 eV / E eV, 18 ( IB द्वारा 6 को तीन इंच तक संकुचित करिए । (च) यदि रोगी हिंसात्मक हो, तो C 3 / E IB (चक्र को संकुचित करने के लिए) ५.३८७
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy