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________________ (ड) C7 ev IE ev (7b के माध्यम से ) ev-E के समय 7 को बड़ा होते हुए दृश्यीक़त करें। (च) E5 W - सावधानी से। (छ) कुछ केसों में 6 अतिसक्रिय होता है, किन्तु उस पर खालीपन होता है। उसको इन केसों में संकुचन करिए, अर्थात 5 6 IB (ज) कुछ केसों में रोगी इतना अधिक कुपित और कुंठित होता है कि वह हिंसात्मक हो जाता है। उसका 6 तथा 3 अति सक्रिय होता है और उन्हें संकुचित करना होता है। ऐसी दशा में C 3/E IB द्वारा 3 __ भी संकुचित करिए। यदि उचित समझें, तो मास्टर उपचार पद्धति अपनायें। इसमें w-w अपनायें। (अ) उपचार को सप्ताह में कई बार दोहराइये। (ट) उपचार की गति भिन्न-भिन्न होती है। कुछ रोगी, एक दफा के उपचार में ही ठीक हो जाते हैं। कुछ को कई सप्ताह या महीने लगते हैं, जो रोग की तीव्रता तथा उपचारक की कुशलता पर निर्भर करता है। उपक्रम (४) मायूसी में पूरक स्व-प्राणशक्ति उपचार (क) रोगी को धीमे-धीमे, गहरे प्राणिक श्वसन करने को कहिए तथा वह साथ-साथ अपने समस्या/ समस्याओं का अवलोकन करे। रोगी को आश्चर्य होगा कि वह अपनी समस्या. को अधिक सटीकता और सकारात्मक दृष्टि से देख रहा है। उसको श्वसन-ध्यान प्रतिदिन करने को कहें ताकि वह समस्या का समाधान कर सके | (ख) रोगी से अपनी सोच, संवेदन जो स्वयं, दूसरों एवम् सामान्य प्रकार से है, उसमें सकारात्मक रुख अपनाने को कहें। यह उसकी आदत में आ जाना चाहिए। जब तक वह अपने सोच व संवेदन के तरीकों में बदलाव नहीं लाएगा, तब तक उपचार की गति सीमित ही रहेगी। ७.३८४
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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