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(ग) रोगी को यह निर्देश दीजिए कि वह अपनी एक सकारात्मक रव - छवि प्रतिदिन बनायें । वह अपने नकारात्मक सोच के आकारों को नष्ट करके, सकारात्मक छवि बनाये। इसकी विधि उक्त क्रम ( ११ ) में वर्णित है, जिसके अनुसार वह करे ।
(घ) रोगी को द्विहृदय पर ध्यान - चिन्तन प्रतिदिन करने के लिए कहिए । यह मायूसी को नष्ट करेगा और अति लाभकारी फल देगा ।
(ङ) रोगी को काफी कुछ व्यायाम करने चाहिए। वातावरण का बदलना भी कुछ केसों में अति लाभदायक रहता है, क्योंकि उदाहरण के तौर पर कुटुम्ब के कुछ सदस्यों की उपस्थिति के कारण रोगी की हालत ज्यादा खराब हो सकती है। कुछ केसों में कभी उन सदस्यों को मनोवैज्ञानिक सलाह देना अथवा उनका प्राणिक मनोरोग उपचार (Psychotherapy) करना भी आवश्यक है।
उपक्रम (५) गम्भीर निराशा / मायूसी
इसमें रोगी के वायवी शरीर में बहुत खालीपन होता है। आन्तरिक आभा मण्डल दो इंच से कम तथा काफी भूरा रंग का होता है। चक्र भी काफी छोटे होते है, लगभग दो इंच के आकार के । मामूली मायूसी में आन्तरिक आभा मण्डल में थोडा खालीपन होता है अथवा स्वस्थ व्यक्ति के बराबर घना नहीं होता ।
(क) मुख्य चक्रों की जांच करें।
(ख) यदि रोगी आपके निदेश का पालन कर सकने योग्य है, तो उसे दस मिनट तक गहन प्राणिक श्वसन सिखाइये ताकि वह स्वयं का ऊर्जन कर सकें अथवा रोगी को भूमि या फर्श पर लिटा दें। तत्पश्चात् GS करें इसका उद्देश्य है कि GS के समय रोगी भू-ऊर्जा को ग्रहण व अवशोषित करता रहे। रोगी को प्राकृतिक पदार्थ की बनी हुई चटाई अथवा कम्बल पर जमीन या फर्श पर लिटायें ।
(ग)
C (पैरों तथा हाथों पर a, e Hh k S ) G / E (a,e, H, h, k, S ) IR H तथा S में प्रेषित प्राणशक्ति का स्थिरीकरण न करें। H
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