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________________ (ग) E (6, 7, 9, 11, 2) ev -- 'चक्र के तड़के हुए भागों की मरम्मत तथा छेदों को सील करने हेतु और सकारात्मक सोच के आकारों के सृजन हेतु E7, 7b के माध्यम से करें। (नोट- E 3 न करें, अन्यथा रोगी को उच्च रक्तचाप हो सकता है) उपक्रम (५) सभी केसों में रोगी के ठीक होने तक उपचार करें। इन सभी रोगों में विवशताओं का केन्द्र 6 है, अतएव इस चक्र के उपचार पर विशेष ध्यान दें। यदि ev का प्रयोग न हो सके, तो Iv का करें, किन्तु यह कम प्रभावी होगा। (१०) स्त्रियों के साथ संभोग की अति तीव्र इच्छाएं, अपने जननांगों का प्रदर्शन करना, यौन सम्बन्धी हिंसा और बच्चे का यौन सम्बन्धी उत्पीड़न करनाNymphomania, Exhibitionism, Sexual Violence and Child Malesting यद्यपि प्राकृतिक तौर पर कामेच्छा स्वस्थकारी होती है, किन्तु इसको नियंत्रित करना आवश्यक है। उन्नतशील परासामान्य (esoteric) विद्यार्थी यौन ऊर्जा को स्वयं के सकारात्मक सृजन, स्वस्थता और आत्मिक उत्थान के लिए परावर्तित कर लेते हैं। ऐसा कदाचित् हमारे ब्रह्मचारी एवम् त्यागीगण भी करते हैं। इस रोग में 2, 6, 9, 11 में नकारात्मक ऊर्जा, नकारात्मक सोच के आकार और नकारात्मक परजीवी भरे होते हैं। 2 तथा 6 में दरार होती है। कभी-कभी 9, 11 में भी दरार होती है। 2 तथा 6 अति सक्रिय होते हैं। (क) Gs (ख) C (2, 6) eVIE ev.-- इनमें दरारों की मरम्मत करें एवम् छेदों को सील करें। इनको E IB के द्वारा ढाई इंच व्यास के आकार तक संकुचित करें। (ग) C (9, 11) eVIE ev - इनमें दरारों की मरम्मत करें एवम् छेदों को सील करें। (घ) C 4 ev IE ev ५.३:५४
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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