________________
गर्भाशय लघु गर्भाशय चक्र द्वारा ऊर्जित तथा नियंत्रित होता है । अण्डाशय तथा अण्डाशय की नलियां लघु अण्डाशय चक्र द्वारा ऊर्जित तथा नियंत्रित होते हैं । उक्त चक्रों की स्थिति चित्र ४. १४ में दर्शायी गयी हैं ।
(क) GS
(ख)
C ( 1, 2, 4 ) G/E IR- यदि रोगी रतिज रोग से पीड़ित है अथवा इसका इतिहास रखता है, तो इनका E1 न करें, अन्यथा इससे उसका रतिज रोग वृद्धिंगत होगा और रोग के सुप्त कीटाणु उत्तेजित हो जाएगे। यदि आवश्यक हो, तो इनमें से अति सक्रिय चक्रों का IB द्वारा संकुचन करें।
(घ)
(ग) CB eV / E eV -- यदि संकुचन आवश्यक हो तो E IB द्वारा करें। C 7 eVE 7 (76 के माध्यम से) eVE ev करते समय 7 को बड़ा होते हुए दृश्यीकृत करें।
C ( 8, 9, 11) eV/E ev
यदि ev का उपयोग न कर पायें, तो इसके स्थान पर IV का उपयोग करें, किन्तु इससे उपचार उतना प्रभावी नहीं होगा जितना ev
द्वारा !
(ङ)
(च)
(छ)
(ज)
(झ)
रतिज रोग होने की दशा में अध्याय १७ के क्रम संख्या ( ११ ) में वर्णित उपचार को उक्त उपचार के साथ मिलाकर करें, किन्तु अध्याय २३ में वर्णित ev द्वारा उपचार के विषय सम्बन्धी निर्देशों का अवश्य पालन करें। यह महत्वपूर्ण है ।
उक्त उपचार में ev या IV प्रयोग करते समय नकारात्मक ऊर्जाओं आदि का निकालना आवश्यक होगा, जिसकी विधि अध्याय २३ के क्रम संख्या (६) में दी गयी है ।
उपचार को सप्ताह में दो बार करें। यदि उपचार ठीक तौर पर किया गया, तो एक या दो माह में अधिकतर केसों में काफी सुधार होगा। रोगी को पुंसकत्व प्राप्त करने के कुछ समय तक यौन प्रक्रिया से दूर
५.३७०