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________________ (ङ) C' (समस्त सिर का क्षेत्र. 11, 9), /E (IV या ev) -- इसका उद्देश्य इन चक्रों से नकारात्मक भावनाएं तथा विचार जो तनाव से सम्बन्धित हैं उनसे, मुक्ति दिलाना है। जो तनाव में रहते हैं, वे अधिकतर हफ्तों, महीनों या सालों तक आधा शीशी के दर्द से पीड़ित रहते हैं। रोगी के उपचार के समय उपचारक को आराम से रहना व तनावपूर्ण नहीं रहना चाहिए. वरना उसकी तनाव की ऊर्जा रोगी को हस्तान्तरित हो जाएगी। यदि उपचार ठीक प्रकार हो जाए, तो रोगी को काफी राहत महसूस होगी। (छ) भावनात्मक तथा मानसिक नियंत्रण रखने और आन्तरिक शांति प्राप्त करने हेतु, रोगी को धीमे-धीमे गहरी प्राणिक श्वसन पद्धति, श्वसन द्वारा ध्यान और द्विहृदय पर ध्यान-चिन्तन सिखाना चाहिए। (२) क्रोध, चिड़चिड़ापन, चिन्ता, शोक और हिस्टीरिया Anger, Irritability, Anxiety, Grief and Hysteria (क) उक्त क्रम (१) के अनुसार (ख) शोक के केस में कई दिनों अथवा हफ्तों तक प्रतिदिन दिन में दो बार उपचार करें। यदि उपचार नहीं हुआ, तो पुनः रोगी होने की सम्भावना (३) (ग) क्रोध के केस में इस अध्याय के क्रम संख्या (२१) के अनुसार रोगी को __अपने क्रोध पर नियंत्रण करना सिखायें । अपने विवाहित जीवन का कैसे सुधार करें और उसको अनुरक्षित करें-- How to improve and save your marriage जब पति/पत्नी (जो भी ऑफिस में कार्यरत होते हैं), दफ्तर से घर आते हैं, तो वे अपने कार्यालय में थकान से उत्पन्न हुई भावनाओं को वहां न निकाल पाने के कारण, घर में निकालते हैं। इसका फल यह होता है कि पत्नी और पति में शब्दों का गरमा-गरम आदान प्रदान होता है और कभी-कभी तो मारपीट भी हो जाती है। लम्बे समय में इससे शादी टूट सकती है अथवा ५.३६७
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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