________________
कहलाता है। जब कोई नकारात्मक विचार आपकी ओर प्रेषित करता है और आप उसको ग्राह्य नहीं करते, तो वह टकराकर वापस भेजने वाले की ओर लौटता है। इस प्रक्रिया में वह उसी अपनी ही प्रकार के नकारात्मक विचारों एवम् ऊर्जा को आकर्षित करता है और जब तक ये प्रेषक की ओर लौटते हैं, इनकी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। उपचारक को अपने को संक्रमण रहित करने के लिए काफी व्यायाम एवम् विहृदय पर ध्यान–चिन्तन करना आवश्यक है। द्विहृदय पर ध्यान चिन्तन से इस प्रकार के विचारों / ऊर्जा आदि का निष्कासन और परावर्तन होता है। इससे आपकी उपधार करने की कुशलता एवम्
योग्यता भी बढ़ती है। (१२) गर्भवती महिला की भावनाओं एवम् विचारों का गर्भस्थ शिशु पर प्रभाव
गर्भवती महिला की भावनाएं तथा विचार गर्भस्थ शिशु के कुछ प्रमुख ऊर्जा चक्रों में स्थित हो जाते हैं, जिसके द्वारा उसके चरित्र पर प्रभाव पड़ता है। इसलिये बेहतर शिशुओं को पैदा करने के लिए, उनकी मांओं को सुन्दर प्रेरणादायक तथा शक्तिशाली चीजों को देखना एवं श्रवण करना बहुत महत्वपूर्ण है। उनके विचार और भावनाएं समन्वयतापूर्वक और सकारात्मक/उन्नतिशील होना चाहिए। क्रोध, निराशा, हानिकारक शब्दों तथा नकारात्मक भावनाओं और विचारों से बचना चाहिए।
__ क्या उन बच्चों का जिनका गर्भस्थ अवस्था में उनकी गर्भवती माताओं के नकारात्मक भावनाओं और विचारों से संक्रमण हो चुका था, उपचार हो सकता है ? इसका उत्तर हां है। आमतौर पर प्रभावित मुख्य चक्र 6, 9 और 11 होते हैं। इन चक्रों का Cv अथवा Cev द्वारा उपचार करना
चाहिए।। (१३) प्रार्थना द्वारा उपचार- Healing by Prayer
यह पाया गया है कि उपचार के तुलना में उपचार के साथ-साथ प्रार्थना भी की जाए, तब उपचार ज्यादा प्रभावी होता है। निम्न प्रार्थनाओं में
७.३५७