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________________ ------ (घ) मद्यपान, धूम्रपान, नशीले पदार्थ अथवा विभ्रम उपजाने वाली दवाइयों / पदार्थों (hallucinogenic drugs) से बचें, क्योंकि वे चक्रों के फिल्टर को अथवा उसके कुछ भाग को जला डालते है। इसके कारण नकारात्मक परजीवी का आगमन सहज हो जाता है एवम् नकारात्मक प्रभाव भी सहज ही पड़ता है, जोकि उस व्यक्ति के नियंत्रण के परे होते है । इसी प्रकार का प्रभाव ज्यादा शराब पीने से होता है। उसके कारण नकारात्मक शारीरिक एवम् मानसिक / मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ते हैं । (ङ) प्रतिदिन द्विह्रदय पर ध्यान चिन्तन करें। इससे वायवी शरीर की सफाई होती है तथा यह निम्न भावनाओं को उच्च भावनाओं में परावर्तित कर देता है। इसका ध्यानकर्ता पर बहुत शक्तिदायक तथा चैन पहुंचाने वाला प्रभाव पड़ता है। इस सम्बन्ध में अध्याय ३ के क्रम संख्या (ग) (३) का भी अवलोकन करें । (च) नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम अथवा नृत्य करें, क्योंकि इससे नकारात्मक भावनाएं बाहर निकलती हैं। अपनी इन भावनाओं को स्वतंत्रतापूर्वक बाहर निकलने दें, अन्यथा शारीरिक व्यायाम / नृत्य का उददेश्य ही समाप्त हो जायेगा ! (छ) यदि आपके घर में समस्या उत्पादन करने वाले बच्चे हैं, तो उनके प्रति नकारात्मक भावनाएं, विचार न करें एवम् नकारात्मक व अप्रिय वचन न बोलें, क्योंकि इससे दशा और अधिक बिगड़ सकती है। उनके सामने न लड़ें, अन्यथा आपके क्रोध / घृणा से वे संक्रमित हो जायेंगे और जिससे उनका मनोवैज्ञानिक संतुलन बिगड़ जायेगा ! (ज) दूसरों को क्षमा करें एवम् उनसे क्षमा मांगें । (झ) अवांछित तथा बुरे लोगों की संगति छोड़ें। (१०) नियमित अभ्यास की आवश्यक्ता प्राणिक उपचार न केवल विज्ञानात्मक है, अपितु कला भी है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि नियमित उपचार का अभ्यास बहुत आवश्यक है। ५.३५४
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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