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________________ सांस के चक्र का नियमन करना चाहिए अथवा धीमे और गहरे श्वांस पेट के अन्दर लेकर प्राणिक श्वसन, जिसकी पद्धति अध्याय ५ के क्रम संख्या २ में वर्णित है, करना चाहिए। इनके द्वारा 6 का नियमन व समन्धय होता है, जिससे उत्तेजना का निवारण होता है तथा राति मिलती है। दूसरे शब्दों में इस प्रकार के श्वसन द्वारा भावनाओं और मस्तिष्क का नियंत्रण हो सकता है। एक समय में कम से कम बारह प्राणिक श्वसन चक्र करें, तथा इसको बढ़ाते जायें। गम्भीर मनोरोगों एवम् हिंसक प्रवृत्ति के रोगियों को प्रतिदिन तीन बार, एक बार में १० से २० मिनट तक यह श्वसन करना चाहिए। कई महीनों तक लगातार करने से काफी सुधार दिखाई देगा। प्राणिक श्वसन के दौरान प्राप्त अधिक ऊर्जा के निष्कासन के लिए कुछ व्यायाम करें, अन्यथा प्राण का घनापन हो सकता है। (ग) रोगी के चक्रों आदि की सफाई करने की विधि भाग ४ के अध्याय १० में मैरिडियन्स का सांकेतिक चित्र, चित्र ४.०८ में दिया है तथा ऊर्जा चक्र की बनावट चित्र ४.१० दी गयी है। इसके अध्याय ११ के क्रम संख्या (6) के अन्तर्गत, चक्र के गलत ढंग से कार्य करने के कारण मनो प्रभाव के वर्णन में मानसिक और भावनात्मक ऊर्जा के उत्पादन, नकारात्मक सोच के आकार (negative thought entities) का उत्पादन, नकारात्मक पदार्थ अर्थात् ऊर्जा परजीवी (negative elementals) के उत्पादन एवम् उनके द्वारा चक्र की जाली (Web) फिल्टर का क्षतिग्रस्त हो जाना (दरार तथा छेद) किस प्रकार होता है, इसको ध्यान से देखें तथा मनन करें, क्योंकि सफाई करते समय इनमें से नकारात्मक ऊर्जा/ सोच के आकार/ परजीवी की सफाई एवम् उनका विध्वंस आवश्यक है। इसके अतिरिक्त चक्र की जाली की मरम्मत तथा कुछ अन्य उपचारात्मक क्रियायें भी करनी होती ५.३४६
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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