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________________ (६) (ग) IB यह चक्रों के संकुचन / धीमा करने तथा प्रेषित प्राणशक्ति को E करके उसको सील करने के लिए। (घ) IR- यह निम्न चक्रों (आमतौर पर 1, 2, 4 ) को सक्रिय करने तथा बड़ा करने के लिये, बशर्ते कि उस चक्र पर जिस पर यह क्रिया करनी हो, ev का इस्तेमाल न तो सफाई के लिए हो और न ऊर्जन के लिए । 6 तथा उससे ऊपर के चक्रों पर इसका उपयोग न करें। IR का उपयोग शारीरिक रोगों (यदि कोई हो) के उपचार से सम्बन्धित अन्य कार्यों के लिए भी किया जाना चाहिए। उपचार से सम्बन्धित सिद्धान्त तथा प्रक्रियायें (क) सिद्धान्त आदि अध्याय १ में वर्णित सभी सिद्धान्त एवम् कार्यपद्धति इस उपचार में साधारणतः लागू होती है, किन्तु उसके क्रम (ख) (७) में वर्णित हाथों की सफाई करते समय स्वस्थ प्राणशक्ति ऊर्जा के बजाय eV का उपयोग किया जाता है। सामान्य प्राणशक्ति ऊर्जा, मनो/ मनोवैज्ञानिक रोगों से सम्बन्धित ऊर्जाओं से हाथों की सफाई करने में असमर्थ होती है। यदि उपचार में ऊर्जन के लिए IV का उपयोग किया गया हो, तो यह कार्य IV द्वारा भी किया जा सकता I है । उपचार के दौरान आरामपूर्वक रहिए तथा तनाव रहित रहिए। तनाव रहने से तनाव की ऊर्जा रोगी को प्रेषित होगी, जिससे उसकी दशा खराब हो जाएगी। (ख) रोगी की उपचार की ग्राह्यशीलता सुनिश्चित करना - (9) अध्याय ४ के क्रम (४) का रोगी से पालन करवायें। (2) उसको द्विहृदय पर ध्यान चिन्तन को प्रतिदिन करने के लिए विशेष रूप से जोर दें । चूंकि रोगी की नकारात्मक भावनाओं के कारण, उपचार हो जाने के पश्चात् वह पुनः रोगी हो सकता है, इसलिए रोगी को अपनी नकारात्मक भावनाओं को कम करने तथा समाप्त करने के लिए संकल्प करना चाहिए। इसके लिए रोगी को अपनी ५.३४५
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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