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(३) चक्रों के गलत ढंग से कार्यरत होने के फलस्वरूप होने वाले मनोरोग
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यह चक्र दिव्य ज्ञान (higher buddhic or cosmic consciousness), दिव्यता और आत्मा के उत्थान का केन्द्र है। इस प्रकार के मात्र अंशात्मक विकसित दिव्य ज्ञान द्वारा जो शीघ्र ही बातें जानी जाती हैं, वह कदाचित् विकसित मस्तिष्क के द्वारा लम्बे समय तक के प्रयत्न से भी नहीं जानी जा सकती हैं। अध्याय ३ के अन्तर्गत द्विहृदय पर ध्यान चिन्तन के वर्णन में हमने देखा कि इस चक्र पर विराजित ओऽम से प्रवाहित ऊर्जा इसी चक्र के माध्यम से शरीर में प्रवेश करती है ।
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उदासी, मायूसी (depression), आलसीपन, अव्यवहारिक होना (becoming impractical), पराकाष्ठा की दशा में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति ।
मस्तिष्क का कमजोर होना, यौन विकृतियों का होना ।
अपना कोई प्रभाव नहीं, किन्तु इसके कारण अन्य विशेषकर गलत विपरीत प्रभाव के कारण, शरीर में रोग फैल सकते हैं
उदासी / मायूसी (depression )
उदासी / मायूसी (depression )
1 के
समस्त |
कोई नहीं, किन्तु समस्त रोगों में इसका उपचार आवश्यक है क्योंकि 6 के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध होने के कारण, रोगों का प्रभाव इस पर पड़ता है।
हकलाना, खाते रहने की प्रवृत्ति, झूठ बोलने की प्रवृत्ति, धूम्रपान करना, शराब की लत, स्व प्रकटता (self-expression) की कमी |
चिड़चिड़ापन, तनाव, क्रोध, शोक, चिन्ता, हिस्टीरिया, भय अथवा फोबिया (phobia), भावनात्मक आघात ( traumas), आशंकितता, भयातुरता, मस्तिष्क में अनर्गल बातें घूमते रहना (obsessions), हकलाना, धूम्रपान,
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