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जाती हैं। इसलिये मनोरोगियों को प्रतिदिन दो बार "द्विहृदय पर ध्यान - चिन्तन" कई महीनों तक करना चाहिए, तत्पश्चात् शेष जीवन भर प्रतिदिन एक बार करना चाहिए।
यह स्व-प्रकटता (self expression), उच्च श्रेणी के सृजनात्मक कार्य ( जिसमें अति सावधानी, सूक्ष्म कार्यशैली होती है) (higher creativity requiring meticulous working), धैर्यपूर्वक विस्तारयुक्त कार्य (working out details requiring perseverence), निम्न मानसिक योग्यता (lower mental faculty or the concrete mind), निम्न श्रेणी की चेतना (lower consciousness) और चिन्ता, व्यग्रता, उलझन का केन्द्र बिन्दु होता है। इसका 2 के साथ उच्च श्रेणी का सम्बन्ध (higher correspondence) होता है। अतएव 8 तथा 2 का शक्तिशाली एवम् क्रियाशील होना परस्पर एक दूसरे पर निर्भर करता है। इसलिए सृजनात्मक कलाकारों की तीव्र यौनेच्छा होती है।
यह उच्च अथवा अमूर्त मस्तिष्क / विचारों का केन्द्र (centre of the higher mental faculty or abstract mind) तथा इच्छाशक्ति एवम् निर्देशन कार्य विशेष का केन्द्र (centre of the will or directive function) होता है। इस चक्र का स्व- दृढ़ इच्छाशक्ति (self-strong will) के लिए अत्यन्त महत्व है। यह अन्य चक्रों को आज्ञा देता है, अतएव इसका प्रभाव अन्य सभी चक्रों पर पड़ता है ।
यह निम्न श्रेणी के दिव्य ज्ञान (lower Buddhic or cosmic consciousness) का केन्द्र है। इसके अतिरिक्त यह अन्तर्ज्ञान (intution) का स्थान (seat) है अर्थात् इस चक्र के माध्यम से बाहरी आयाम अर्थात चतुर्थ आयाम (outer dimension or fourth dimension) में झांका जाता है।
यह दिव्य ऊर्जा, ev एवम g का एक मात्र प्रवेश केन्द्र है। यह अन्तःकरण आध्यात्मिक डोरी (spiritual cord) से जुड़ा होता है।
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