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नाम विवरण
की
संख्या
व्युच्छति (क्षपक श्रेणी वाले के)
जीवों संख्या
१० | सूक्ष्म जिस प्रकार धुले हुए | इस गुणस्थान के अन्त में, सांपराय कसूमी वस्त्र में संज्वलन लोभ मोहनीय कर्म प्रकृति
लालिमा सुर्जी सूक्ष्म रह =१ जाती है, उसी प्रकार जो |
| नोट- पृथक्त्ववितर्क वीचार | जीव अत्यन्त सूक्ष्म |
| शुक्लध्यान (प्रथम शुक्ल ध्यान) के राग-लोभ कषाय से युक्त
| फलस्वरूप इस गुणस्थान के हैं, उनको सूक्ष्मसाम्पराय
अन्त में क्षपक श्रेणी वाले जीवों गुणस्थानवर्ती कहते हैं।
का मोहनीय कर्म सर्वथा नाश को
प्राप्त हो जाता है। | ११ | | उपशान्त | इस गुणस्थान में निर्मली नोट- क्षपक श्रेणीवाला इस
| फल से युक्त जल की | गुणस्थान को प्राप्त नहीं करता तरह, सम्पूर्ण मोहनीय कर्म | है। के सर्वथा उपशम से होने वाले निर्मल परिणाम होते
मोह
... | १२ | क्षीण
कषाय
| जिस निर्ग्रन्थ का चित्त | मति, श्रुत, अवधि, मनः पर्यय, | मोहनीय कर्म के सर्वथा | केवल ज्ञानावरण =५ ज्ञानावरण क्षीण (नाश) हो जाने से | कर्मः चक्षु, अचक्षु. निद्रा. स्फटिक के निर्मल पात्र में | प्रचला, अवधि, केवल दर्शनावरण रखे हुए जल के समान = ६ दर्शनावरण कर्म; निर्मल हो गया है, उसको दानान्तराय, लाभान्तराय, क्षीण कषाय गुणस्थानवर्ती भोगान्तराय, उपभोगान्तराय, कहते हैं।
वीर्यान्तराय अन्तराय कर्म =५ नोट- एकत्ववितर्क |
कुल =दर्शनावरण - ६, वीचार(द्वितीय) शुक्ल ध्यान |
ज्ञानावरण-५. अन्तराय-५ = १६ के फलस्वरूप शेष घातिया
कर्म प्रकृति गुणस्थान के अन्त में कर्मों का इस गुणस्थान के अन्त में सर्वथा नाश हो जाता है।
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