SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 798
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर ध्यान चिन्तन (भाग ३ में वर्णित) बहुत ही ज्यादा सहायक होंगे, क्योंकि इसके द्वारा आन्तरिक शांति, समन्वयता और प्रसन्नता प्राप्त होती है। यदि लगातार किया जाये, तो ध्यानकर्ता के हृदय में दया तथा प्रेम को बढ़ावा मिलता है। इस द्विहृदय पर ध्यान चिन्तन का निम्न कारणों से शक्तिशाली उपचारी प्रभाव पड़ता है:ध्यानकर्ता को ध्यान-चिंतन के दौरान तथा उसके बाद प्रसन्नता, शान्ति, प्रेम-दया और अन्य सकारात्मक भावनाएं महसूस होती है, जिससे सभी प्रभावित चक्रों और मैरिडियनों पर उनके सफाई तथा सामान्यीकरण का प्रभाव पड़ते हैं। ध्यान-चिन्तन के दौरान दिव्य ऊर्जा अथवा विद्युतीय-बैंगनी ऊर्जा की भारी मात्रा का सफाई करण, ऊर्जाकरण, सामान्यीकरण और पुनर्निर्माणी प्रभाव पड़ता है। दिथ्य उपचारी ऊर्जा का अवशोषण निम्न स्वीकृतिकरण को तीन बार दोहराकर बढ़ाया जा सकता है:-- "मेरे दिमाग, भावनाएं तथा शरीर की सफाई हो रही है। वे दिव्य ऊर्जा को ग्रहण एवं अवशोषण कर रहे हैं। मेरे शरीर में स्थित सभी चक्र, मैरिडियन और प्रत्येक कण की सफाई, ऊर्जन और उपचार हो रहा है। मैं पूर्ण बना जा रहा हूं। मैं ठीक किया जा रहा हूं। मैं स्वेच्छा और कृतज्ञतापूर्वक दिव्य ऊर्जा को ग्रहण करता हूं तथा इसके लिए धन्यवाद देता हूं और पूरे विश्वास के साथ। यह आवश्यक है कि अतिरिक्त ऊर्जा का निष्कासन किया जाये और शारीरिक व्यायाम भी किया जाये। इस सबकी प्रक्रिया अध्याय ३ में दी गयी उपक्रम (५)- क्षमा का नियम और दया का नियम उपरोक्त नियमों द्वारा नकारात्मक कार्मिक प्रभाव को कम अथवा नष्ट किया जा सकता है। यह आवश्यक है कि जिन्होंने आपको चोट पहुंचायी है, उन्हें आप क्षमा करें। यह उनकी एक सूची बनाकर, फिर उनको दृश्यीकृत ५.३२६
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy