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________________ इन चारों चक्रों का भी प्रभावित होते हैं । दीर्घकालीन और तीव्र ल्यूकीमिया में अन्तर 1 के अधिक सक्रियपन तथा 1, 7 तथा 9 में भरी हुई गंदी पीली रंग की रोगग्रस्त ऊर्जा की मात्रा के अन्तर से है ! तीव्र ल्यूकीमिया में सामान्य आकार के मुकाबले 1 ढाई से तीन गुना अधिक सक्रिय हो जाता है तथा गंदी पीली रोगग्रस्त ऊर्जा ४० से ६० प्रतिशत हो जाती है। तीव्र ल्यूकीमिया का लक्षण पहले से पता लगा पाना मुश्किल होता है। दीर्घकालीन ल्यूकीमिया में 1 इतना अधिक सक्रिय नहीं होता और गंदी पीली रोगग्रस्त ऊर्जा ५ से १० प्रतिशत होती है। ज्यादा अधिक तीव्र केस नहीं होने में यह ऊर्जा १० से ४० प्रतिशत तक रहती है । (क) GS (कई बार ) G (ख) C (11, 10, 9, bh, 8) G-V/E ev इसमें 9 के पर विशेष ध्यान देना चाहिए । (ग) C' 7 G ~VIE 7 (7b के माध्यम से) ev - यह चरण बहुत महत्त्वपूर्ण है । T आवश्यक है। अन्य मुख्य तथा बांहों तथा पैरों के लघु चक्र (ङ) (घ) C LuTELu (Lub के माध्यम से) GO - इससे रक्त का शुद्धिकरण होता है। EO के समय अपनी उंगलियां रोगी के सिर से दूर इंगित करें। (च) (छ) - C5G ~VIE ev E इस इच्छा से करें कि इससे ल्यूकीमिया की कोशिकाएं टुकड़े-टुकड़े हो जायें। सावधानी बरतें। 5 तथा 3 की पुनः जांच करें। यदि यह अधिक सक्रिय हों, तो C/EIB से संकुचन करें। यह काफी महत्वपूर्ण है। जो ज्यादा कुशल उन्नत प्राणशक्ति उपचारक नहीं है, वे C5GOV/EV करें। मात्र C (रीढ़ की हड्डी) G~0 सिर के नजदीक या गर्दन के आगे न करें । C 160 (C ५० से १०० बार करें) C अत्यन्त आवश्यक है। E IB संकुचन करने हेतु, 1 की पुनः जांच करें । (ज) क्रम संख्या २ (ग) के अनुसार (झ) E 1eV -- ल्यूकीमिया की कोशिकाओं को तोड़ने की इच्छा से समस्त अस्थि तंत्र रीढ़ की हड्डी, पसलियों, छाती की हड्डी, कूल्हे की हड्डियों और बांहों - ५.३०९
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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