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तथा पैरों की हड्डियों में ev को जाते हुए दृश्यीकृत करें। E1 के दौरान उपचारक को कुछ हद तक अपनी इच्छा शक्ति का इस्तेमाल करना पड़ेगा, क्योंकि आम तौर पर मूलाधार चक्र की ev को ग्रहण न करने की प्रवृत्ति होती है। E 1 के दौरान, उपचारक को यह भी इच्छा करनी चाहिए कि 1 अधिक संक्रेिग (overactivated) नहीं होगा। यह चरण अति महत्वपूर्ण है । ठीक प्रकार से इस चरण की प्रक्रिया करने के लिए एक अनुभवी और कुशल उन्नत प्राणशक्ति की जरूरत पड़ती है।
(ञ) जो कम कुशल उन्नत प्राणशक्ति उपचारक है, वे उक्त क्रम (झ) के स्थान पर E 1 R करें - इसमें काफी समय लगेगा, क्योंकि इसमें बहुत खालीपन होता है । यह अति महत्वपूर्ण है ।
(ट)
( C" 6 CL)GO/E6R C' ( 3, 2, 4) / E(24) W (ड) जब तक आवश्यक्ता हो, सप्ताह में तीन बार उपचार करें।
रोगी को पूर्ण शाकाहारी होना चाहिए ताकि वह स्वास्थ्य दृष्टि के साथ-साथ, क्रूरता तथा हिंसा से बच सके। कर्मानुसार, दया करने से ही दया प्राप्त होती है। इससे रोगी के शीघ्र उपचार में मदद मिलती है। इसके अतिरिक्त उसको दान करना चाहिए - धर्मार्थ एवम् सुपात्र दान (न कि कुपात्रों या अपात्रों को दान), तथा द्विहृदय पर ध्यान - चिन्तन जिसका विवरण अध्याय ३ में दिया है, करना चाहिए ताकि सकारात्मक कर्म कर सके। उसको यह भी सलाह दें कि क्षमा का नियम अपनाये,
अर्थात दूसरों को क्षमा करे और परमात्मा से क्षमा मांगे |
५.३१०