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________________ प्रतिरक्षात्मक रोग- Auto-Immune Ailment पूरा शरीर वायवी तौर पर काफी गंदा होता है। 1, 7, थायमस ग्रंथि तथा 9 पर विपरीत प्रभाव हुआ होता है। 1, बाहों तथा पैरो कं लघु चक्रों पर खालीपन होता है। हमेशा तो नहीं, किन्तु आम तौर पर 6 तथा । पर घनापन होता है और वे भूरी सी लाल प्राण ऊर्जा से भरे होते हैं। 5 और प्लीहा वायवी तौर पर काफी गंदे होते हैं। 6 तथा L के नजदीक होने के कारण, र प्रभावित हो सकते हैं। (क) GS (कई बार) (ख) उक्त क्रम ३ (ख) के अनुसार (T) C1 GOIER (घ) c (बाहों तथा पैरों पर, a, e, H, h, k, S- विशेष तौर इन लघु चक्रों पर)G-OF E (a, e, H.r, k, S) R -H तथा में प्रेषित प्राणशक्ति का स्थिरीकरण न करें। (ङ) 07/E 7 (7b के माध्यम से) Gv (च) C" 6/ E Gv.- अनुभवी उन्नत प्राणशक्ति उपचारक इसके स्थान पर C (6, L) G-O/ E6 BGO कर सकते हैं। (छ) c5 G/E Gv - सावधानी से (ज) C K G-O/E R (झ) c' 3 (ञ) C' (8, 9)/ E (कम G) v' (ट) जब तक आवश्यक्तानुसार हो. उपचार को सप्ताह में तीन बार करें। अधिश्वेतरक्तता (ल्यूकीमिया)- Loukemia इस रोग में निम्न चक्र प्रभावित होते है :1 – खालीपन, अधिक सक्रियता, गंदी पीली लाल रोगग्रस्त ऊर्जा से भरे हुए। 7 तथा 9 - खालीपन, कम सक्रियता. गंदी पीली लाल रोगग्रस्त ऊर्जा से भरे हुए। उक्त चक्र भी गलत ढंग से कार्य कर रहे होते हैं। प्लीहा ल्यूकीमिया के कोशिकाओं से बुरी तरह प्रभावित होता है और 5 पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। ५.३०८
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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