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________________ संख्या ५. देशविरत देशव्रती / देशसंयमी ( देशसंयम) सम्यक्त्वी जीव नाम विवरण ७. ८. ६. प्रमत्त सकल संयमी (महाव्रती ) अप्रमत्त जहां सम्यक्त्व है एवम अनन्तानुबन्धी क्रोध / मान / - स्वस्थान महाव्रत है तथा संज्वलन माया / लोभ, मिथ्यात्व / अप्रमत्त कषाय के मन्द उदय से सम्यक्मिथ्यात्व / सम्यक् प्रकृति - सातिशय प्रमाद भी नहीं है, उसे नामक ७ मोहनीय कर्म की अप्रमत्त अप्रमत्त गुणस्थान कहते । प्रकृति, नरकायु, तियंचायु हैं। जो अप्रमत्त विरत आगे देवायु ३ आयु कर्म गुणस्थान में जाने का कुल १० कर्म प्रकृति अपूर्व परिणाम नहीं कर रहा और छठे में जावेगा, अथवा जो छठे में न जा सके किन्तु मरण कर चौथे में जायेगा, वह स्वस्थान अप्रमत्त है। जो श्रेणी चढने के सन्मुख है वह सातिशय अप्रमत्त है। अधः | इस गुणस्थान के काल में प्रवृत्तकरण ऊपर के समयवर्ती जीवों के परिणाम नीचे के समयवर्ती जीवों परिणामों के सदृश - अर्थात संख्या और विशुद्धि की अपेक्षा समान होते हैं। व्युच्छति ( क्षपक श्रेणी वाले के ) १.६६ ● ० जीवों संख्या १३ करोड़ मनुष्य तथा पल्य के असंख्यातवें भाग तिर्यञ्च ५,६३,६८,२०६ मनुष्य २.६६,६६,१०३ उपशम वाले वें, १० वें, श्रेणी वें. ११ वें के गुणस्थान जीवों का प्रमाण ३०० / ३०४ / २६६ (विभिन्न आचार्यों है । अनुसार ) क्षपक श्रेणीवाले इससे दुगने हैं।
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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