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रस, मधुर रस, कटुक रस, तिक्तरस, कसैला रस, सुगंध (सुरभि), दुर्गंध (दुरभि), कृष्ण वर्ण, नील वर्ण, पीत वर्ण, रक्त वर्ण, श्वेत वर्ण, नरकगत्यानुपूर्व्य, तिर्यग्गत्यानुपूर्व्य, मनुष्यगत्यानुपूर्व्य, देवगत्यानुपूर्व्य, अगुरुलघु, उपघात, परघात, आताप, उद्योत,उच्छवास, प्रशस्तविहायोगति, अप्रशस्तविहायोगति. प्रत्येक शरीर, साधारण शरीर. त्रस, स्थावर, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुःस्वर, शुभ, अशुभ, सूक्ष्म, बादर, पर्याप्ति, अपर्याप्ति, स्थिर, अस्थिर, आदेय, अनादेय, यशः कीर्ति, अयशकीर्ति, तीर्थकरत्व।
-६३
___ गोत्र
- उच्च गोत्र, नीच गोत्र।
=२
=१०१
समस्त आठों कर्मों की प्रकृतियों का योग
=१४८
न सम्यकत्वसम किंचित त्रैकाल्ये त्रिजगत्यपि। श्रेयोऽश्रेयश्च मिथ्यात्वसमं, नान्यत्तनूभृताम् ।।३४।।
-(रत्नकरण श्रावकाचार) । तीनों लोकों और तीनों कालों में सम्यकत्व के बढ़कर अन्य कोई पदार्थ उपकारी - कल्याणकारी नहीं । है, तथा मिथ्यात्व से बढ़कर कोई अन्य अपकारी अर्थात् दुःखदायक नहीं है।
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