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________________ (क) GS (ख) C ( 2, उसके सभीप का क्षेत्र तथा प्रभावित अण्डाशय) G~0 (ग) E 2 Gi (घ) C' (प्रभावित अण्डाशय)G~0 - यह अति महत्वपूर्ण है। (ङ) E (प्रभावित अण्डाशय) BG' - B स्थानीयकरण तथा G संक्रमण हटाने तथा घोलने के लिए है। (च) C' (1, 4)/ थोड़ा सा E w (छ) C" BE GBV (ज) C (11, 9, 8)/E Gv' (झ) उक्त चरण (ख) से (ङ) तक पर विशेष ध्यान दें। (ञ) उपचार को सप्ताह में तीन बार करें। इसमें तीन माह या उससे अधिक लग सकता है। (६) गर्भाशय में रसौली- Myoma 2 पर बहुत धनापन होता है और गंदी लाल प्राण ऊर्जा से भरा होता है। यह रोगी प्रायः यौन क्रिया के प्रति संकुचित होते हैं और उसके प्रति अनुचित प्रवृत्ति रखते हैं। सम्भोग के दौरान भी यौन ऊर्जा समुचित रूप से बाहर नहीं निकल पाती। यौनेच्छा अत्यधिक दबी हुई होती है और स्वस्थ व्यक्तियों की तरह यौन ऊर्जा अन्य चक्रों को स्वतंत्र रूप से नहीं जा पाती। इसके कारण गर्भाशय पर धीरे-धीरे रसौली की उत्पत्ति हो जाती है और वह बढ़ती जाती है। उन स्त्रियों के जो यौन-प्रताडित होती हैं, यौन क्रिया के लिए नकारात्मक भावना विकसित हो सकती है. जिसके कारण लम्बे समय में यौन रोग उत्पन्न हो जाते हैं। चेतन या अचेतन अवस्था में यौन ऊर्जा के शोधित न होने की दशा में, सम्भोग की अनुपस्थिति के कारण, यह सन्यासिनियों में रोग हो सकता है। इस रोग से पीडित अथवा डिम्बग्रंथि की रसौली से पीड़ित रोगी के E 2 10 किञ्चित भी न करें। 2 में एक निश्चित गणितीय अनुपात में नारंगी तथा लाल प्राण ऊर्जा रहती है। E 2 (mo अथवा do) के फलस्वरूप इस गणितीय अनुपात को बनाये रखने के लिए और अधिक लाल प्राण उत्पन्न होगा, जिससे 2 ५.२७९
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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