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________________ (क) GS (२) (ख) CLu/E Lu ( Lub के माध्यम से) GOR- इससे रक्त तथा समस्त शरीर पर सफाई तथा शक्ति पहुंचने का प्रभाव होता है। E0 करते समय अपनी उंगलियां रोगी के सिर की ओर इंगित न करें। C" 6', C WE 6 GBV (घ) C7 E7b Gv - यह रोगी को आंतरिक शांति प्रदान करने के लिए (ङ) C(3 तथा समस्त रीढ़ की हड्डी), यदि 3 अधिक सक्रिय है तो उसे E IB द्वारा संकुचित करिये तथा उसके आकार को अन्य चक्रों के आकार से लगभग आधा करने की इच्छाशक्ति करिए। (च) CK G~0/ E GORI C' - यह K का धीरे-धीरे पुनर्निर्माण करने हेतु है। (छ) उक्त क्रम (४) (प्रथम) (ङ) के अनुसार (ज) C 5 Gv - सावधानी से (झ) c 1/E W (अ) C (11, 10, 9, 8 yE Gv (ट) उक्त चरण (च) पर विशेष ध्यान दें। (उ) इस उपचार को छह माह से लेकर एक वर्ष तक सप्ताह में तीन बार करें। परिणाम अलग-अलग होते हैं। कुछ रोगियों में सुधार होगा और कुछ में नहीं। जो अनुभवी और कुशल उन्नत प्राणशक्ति उपचारक हैं, वे आंतरिक अंगों की सफाई की तकनीक जिसका वर्णन अध्याय ६ के क्रम १० (२८) में दिया है. अपनाएं। इस तकनीक द्वारा रोगी की दबी हुई नकारात्मक भावनाओं. वायवी शरीर और भौतिक शरीर पर सफाई का प्रभाव पड़ेगा, जिससे उपचार गति में तेजी आयेगी। ५.२७४
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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