________________
७. केवली समुद्घात- आयुकर्म की स्थिति अत्यल्प रहने पर
तथा शेष तीन अघातिया कर्मों की स्थिति अधिक होने पर सयोग केवली भगवान् के आत्मप्रदेशों का दण्ड, कपाट, प्रतर और लोकपूरण के प्रकार से जो बाहर निकलना होता है उसे केवली समुद्घात कहते हैं। इस समुदघात में आठ समय तथा
शेष समुद्घातों में अन्तर्मुहुर्त का समय लगता है। आहारक उत्कृष्ट काल सूच्यंगुल के असंख्यातवें भाग है तथा जघन्य काल तीन समय कम श्वास के अठारहवें भाग प्रमाण है, क्योंकि विग्रहगति सम्बन्धी तीन समयों के घटाने पर क्षुद्र भव का काल इतना ही अवशेष रहता है। अनाहरक का काल कार्माण शरीर में तीन समय का है और जघन्य काल एक समय का है। (ट) गुणस्थान
मोह और योग के निमित्त से होने वाली आत्मा के सम्यदर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र गुण की अवस्थाओं को गुणस्थान कहते हैं। यहां कर्मों की प्रकृति व उनके भेद-प्रभेदों के नाम उल्लेखनीय होंगे। घातिया- ज्ञानावरण - मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण,
अवधिज्ञानावरण,
मनः पर्ययज्ञानावरण, केवल ज्ञानावरण
-दर्शनावरण - चक्षुर्दर्शनावरण, अचक्षुर्दर्शनावरण,
अवधिदर्शनावरण, केवलदर्शनावरण, निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला. स्त्यानगृद्धि
-मोहनीय
-- दर्शनमोहनीय- मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व,
सम्यक्त्व प्रकृति (३), चारित्रमोहनीय(अनन्तानुबन्धी/ अप्रत्याख्यान/ प्रत्याख्यान/संज्वलन) x (क्रोध / मान/ माया/लोभ) (=१६)+हास्य, रति, अरति. शोक, भय, जुगुप्सा, पुरुषवेद, स्त्रीवेद,
=२८
१.६२