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________________ शुभ तैजस- जब लोक के प्राणियों को व्याधि, दुर्भिक्ष आदि से पीड़ित देखकर तैजस ऋद्धिधारी सयमी मुनि के अंतःकरण में दया उत्पन्न होती है तब मुनिराज के दांये कंधे से तैजस शरीर निकलकर शुभ कार्य करता है। यह शरीर हंस के समान धवल (सफेद) वर्ण का होता है और १२ योजन तक के जीवों का दुःख दूर करके फिर मूल शरीर में प्रवेश कर जाता है। अशुभ तैजस- जब मन अनिष्टकारी किसी कारण या उपद्रव को देखकर, तैजस ऋद्धिधारी मुनि की क्रोध-कषाय से उत्पन्न होता है, तब वह बायें कंधे से सिन्दूर की तरह लाल रंग का, बिलाव के आकार वाला, बारह योजन लम्बा, मूल में नौ योजन चौड़ा होता है, जो बारह योजन तक के सभी पदार्थों को जलाकर मूल शरीर में प्रवेश कर उस शरीर को भी जला डालता है और मुनि को नरक में पहुंचा देता है। आहारक समुद्घात- ऋद्धिधारी प्रमत्त गुणस्थानवर्ती मुनि के द्वारा सूक्ष्म पदार्थों को जानने के लिए अथवा संयम की रक्षा, तीर्थ-वन्दना हेतु, अन्य क्षेत्र में मौजूद केवली या श्रुतकेवली के पास भेजने के लिए मुनि के मस्तक से जो एक हाथ का सफेद रंग का पुतला निकलता है उसे आहारक समुद्घात कहते हैं। सर्वज्ञ प्रभु के दर्शन से संदेह दूर हो जाता है और मूल शरीर में पुनः प्रविष्ट हो जाता है। इसकी जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त मात्र है। इससे किसी भी दूसरे पदार्थों का व्याघात नहीं होता है। १.६१
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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