________________
१४. आहार
मार्गणा
- शरीर नामा नामकर्म के उदय से देह-औदारिक वैक्रयिक आहारक,
इनमें से यथासम्भव किसी भी शरीर तथा वचन और द्रव्यमन रूप बनने के योग्य नोकर्मवर्गणाओं का जो ग्रहण होता है उसको आहार कहते हैं। ऐसे जीव को आहारक कहते हैं। विग्रहगति को प्राप्त होने वाले चारों गति सम्बन्धी जीव, प्रतर और लोकपूर्ण समुद्घात करने वाले सयोग केवली, अयोग केवली और समस्त सिद्ध अनाहारक होते हैं। अपना मूल शरीर छोड़े बिना तैजस और कार्माणरूप उत्तरदेह के साथ जीव प्रदेशों के मूल शरीर से बाहर निकलने को समुद्घात कहते हैं। प्रसंगवश यहां पर समुद्घात के प्रकार कहते हैं:
१. वेदनासमुद्घात- पीड़ा वेदना के निमित्त से आत्म प्रदेशों का
बाहर निकलना २. कषायसमुदघात- क्रोधादि के वश प्रदेशों का बाहर निकलना। ३. वैक्रेयिक समुद्घात- विक्रिया के द्वारा प्रदेशों का बाहर
निकलना। ४. उपपाद और मारणान्तिक समुद्घात- जीव का अपनी पूर्व
पर्याय को छोड़कर नवीन पर्यायजन्य आयु के प्रथम समय को उपपाद कहते हैं। पर्याय के अन्त में मरण के निकट होने पर बद्धायु के अनुसार जहाँ उत्पन्न होना है, वहाँ के क्षेत्र को स्पर्श करने के लिए आत्म प्रदेशों का शरीर से बाहर निकलना
मरणान्तिक समुद्घात है। ५. तैजस समुद्घात- शुभ या अशुभ तैजस ऋद्धि के द्वारा
निकलने वाले तैजस शरीर के साथ आत्म प्रदेशों का बाहर निकलना।
१.६०