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(छ) 01 (E न करें, क्योंकि इससे बुखार बढ़ सकता है)
C (बाहों तथा पैरों पर a, e, H, h.k, S) IE (a, e, H, h, k, S) v-प्राण ऊर्जा को हड्डियों में जाते हुए दृश्यीकृत करें-- यह प्रतिरक्षात्मक तंत्र को मजबूत करने के लिए है। इस प्रक्रिया को दिन में एक बार से अधिक न करें, वरना प्रतिकूल प्रक्रिया हो सकती है। तथा 5 में प्रेषित प्राणशक्ति का स्थिरीकरण न करें 6 (11, 10, 9, bh, 8)E GV उक्त चरण (ख), (ग) तथा (घ) पर विशेष ध्यान दें। उपचार को दो-तीन घंटे बाद दोहरायें क्योंकि प्राण ऊर्जा की खपत बहुत तेजी से होती है। पहले कुछ दिनों तक दिन में तीन-चार दफा उपचार करें। हालत सुधर जाने तथा स्थिरीकरण होने पर उपचार की संख्या कम की जा सकती है। यदि सर्जीकल ऑपरेशन की जरूरत हो, तो रोगी को अस्पताल में भरती होना चाहिए। सभी तीव्र प्रकार के एडिसाइट्सि प्राण-शक्ति उपचार से ठीक नहीं किये जा सकते, विशेष तौर पर कई दिन पुराना एपैन्डिसाइटिस हो तो।
जो रोगी हाल में ही ठीक हुए हो, उनको अगले कुछ महीनों तक भारी और तनावपूर्ण व्यायाम नहीं करना चाहिए तथा भारी भोजन न करें। उनको प्रतिदिन शौच जाना चाहिए। आंत्रपुच्छ के क्षेत्र में और तनिक सा दर्द होने पर और ज्यादा उपचार करवाना चाहिए।
दीर्घकालीन एपैन्डिसाइटिस के केस में मात्र c" B, C (4, आंत्रपुच्छ) एवम् E (6, 4, आंत्रपुच्छ) GBV ही करें। (१३) तीव्र पैन्क्रियाटाइटिस- Acute Pancrsatitis
इस रोग में अग्न्याशय पर तीव्र सूजन होती है। रोगी को सौर जालिका क्षेत्र पर तथा उसके पीछे तीव्र दर्द महसूस होता है। बुखार, ठंडी, ठंडा पसीना, उल्टी और सिर दर्द का अनुभव होता है। रोगी तीव्र झटका (आघात) (Severe shock) की हालत में होता है। यह रोग काफी गम्भीर होता है और रोगी को उचित मैडिकल उपचार मिलना चाहिए।