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________________ T (क) (ख) GS (२) C" 6, CL (L भी गंदा होता है ) / E 6 GBV - यह चरण काफी महत्वपूर्ण है। एक दफा यदि 6 सामान्य हो जाता है, तो धीरे-धीरे यह रोग चला जाता है। (ग) C7/E7b GV- इस चक्र को बड़ा होता हुआ दृश्यीकृत करें- यह रोगी की आन्तरिक शांति के लिए एवम् उसके द्वारा निम्न भावनाओं को नियंत्रित करने के लिए है। (घ) C' (9, माथा, गालों पर) E9GBV / C इस पूरे चरण को तब तक करते रहे, जब तक रोगी को काफी आराम नहीं मिल जाता। (ङ) C (1, 4)/EW - यह प्रतिरक्षात्मक तंत्र को मजबूत करने एवम् शरीर को शक्ति पहुंचाने के लिए है। (च) सप्ताह में दो या तीन बार करें। (छ) यदि उपचारक ठीक से हो जाता है, तो रोगी तुरन्त ठीक हो जाता है। आम तौर पर दीर्घकालीन सायनूसाइट्सि कई बार के प्राणिक उपचार से ठीक हो जाता है । (3) दीर्घकालीन कंफ- Chronic Cough 6, 8, 8' भूरे रंग से रंग के होते हैं। 1 आंशिक रूप से खोखला (depleted) होता है । (ङ) (च) (क) GS (२) (ख) C" 6, C L/ E 6 GBV (ग) C7/E7b GV C' ( 8, 8, j) / E GBV C9/EGBV Lu कुछ अंश तक साधारणतया प्रभावित होता है, इसलिए C' (Lu, 7b)/ E Lu (Lub के माध्यम से) GO - जब EO कर रहे हों, तो आपकी उंगलियों रोगी के सिर की तरफ इंगित नहीं होनी चाहिए। ५.२५४
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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