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१०. लेश्या
मार्गणा
देखना-ग्रहण- प्रकाश- अवभासन होना केवल ___ - लोक और अलोक के सभी पदार्थों का सामान्य दर्शन
आभास रूप प्रकाश होना, अर्थात सभी पदार्थों
का सामान्य दर्शन होना। - जिसके द्वारा जीव अपने को पुण्य ओर पाप से लिप्त करे, उसे लेश्या कहते हैं। ये दो प्रकार की है। द्रव्य लेश्या शरीर के वर्ण रूप और भाव लेश्या जीन के परिणामस्का है। महां भारलेल्या को ही दृष्टि में रखकर यह निरुक्ति-सिद्ध लक्षण कहा गया है। कषाय और योग इन दोनों के जोड़ को लेश्या कहा गया है। क्योंकि कर्मों का प्रकृति बन्ध और प्रदेश बन्ध योग के द्वास होता है और स्थिति बन्ध और अनुभाग बन्ध कषाय के द्वारा होता है। लेश्या छह प्रकार की होती है:- तीन अशुभ- कृष्ण, नील, कापोत और तीन शुभ- पीत, पद्म, शुक्ल । कृष्ण - तीव्र क्रोध करने वाला, धर्म और दया रहित, 'वैर को
न छोड़ने वाला, दुष्ट नील - विवेकरहित, मानी, मायाचारी, इन्द्रिय लम्पट, ठग,
अति निद्रालु, लोभी. धन धान्य के विषय में तीव्र लोभी कापोत - क्रोध करना, निन्दा करना, शोक/भय ग्रस्त रहना,
दूसरे का तिरस्कार करना, दूसरे को दुःख देना,
स्व-प्रशंसा करना आदि। पीत - अपने कार्य अकार्य में विवेकशील, सबके विषय में
समदर्शी, दया और दान में तत्पर, मन वचन काय के
विषय में कोमल परिणामी पदम - भद्रपरिणामी, दान देने वाला, उपद्रवों को सहना,
उत्तम काम करने का स्वभाव हो, मुनिजन गुरुजन
आदि की पूजा में प्रीतियुक्त हो शुक्ल - पक्षपातरहित, निदानरहित, सब जीवों में समदर्शी
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