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(ठ) प्रेषित की हुई प्राण ऊर्जा का स्थिरीकरण करें किन्तु H तथा s में प्रेषित ऊर्जा का स्थिरीकरण करें।
(ङ) उपचार के बाद आपक व रांगी के बीच की वायवी डोर को काटें। (ढ) मामूली रोगों में उपचार किये हुए हिस्से को रोगी कम से कम १२ घंटे तक न धोये तथा गम्भीर रोगों में यह प्रतिबंध २४ घंटे का है। पानी कुछ प्राणिक ऊर्जा को शोषण कर लेता है।
(ण) उपचारकों को अपनी बांह व हाथ वायवी तरीके से साफ करने चाहिए । फिर कीटनाशक साबुन से धोना चाहिए ।
(त)
रोगी व उपचारक अन्य निर्देशों का, जो इस अध्याय में अब तक दिये गये हैं, उनका पालन करें।
(थ) यदि आप निश्चित नहीं है तो निम्न प्रक्रिया करें ।
(9)
GS कई बार करें।
(२)
(3)
(ङ)
C (मुख्य चक्रों, अधिक महत्वपूर्ण लघु चक्रों, प्रमुख अंगों )
EGV (सभी मुख्य चक्रों ओर अधिक महत्वपूर्ण लघु चक्रों, सिवाय 3 के), E5 सावधानी से करें। उक्त वर्णित निर्देशों का पालन करें।
(४)
उपचार को नियमित रूप से दोहराएं।
अधिकतर रोगों में यह विधि अपनाई जा सकती है।
(१२) महत्वपूर्ण बातें जिनको ध्यान में रखें
(क) ऊर्जा 4 के माध्यम से प्रवाहित होती हैं यदि इसमें घनापन (congestion) हो जाता है, तो आंशिक अथवा समग्र ऊर्जा नीचे वापस आकर पेशाब अथवा यौन समस्यायें पैदा कर सकती हैं ।
(ख) उच्च रक्तचाप को तुरन्त ही कम करने के लिये C 3G/EB (ठंडा करने, सुकून पहुंचाने हेतु और इस चक्र के संकुचन हेतु )
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