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(ग)
3 ( कटिचक्र ) K तथा अधिवृक्क ग्रंथियों को नियंत्रित व ऊर्जित करता है । यह 1 से आने वाली ऊर्जा के लिए पम्पिंग स्टेशन का भी काम करता है, इसीलिये 1 से आने वाली नकारात्मक भावनात्मक psychic ऊर्जा (जैसे भय की ऊर्जा) को यह कटिचक्र समग्र वायवी शरीर में पम्प कर देता है।
(घ) ओजस्विता के दृष्टिकोण से 5 महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वायु प्राण इसके माध्यम से प्रवेश करती है। इसलिये समस्त संक्रमणों में इसका उपचार अत्यावश्यक है।
(ङ) लम्बे समय तक रहने वाली निम्न नकारात्मक भावनायें 6f में समस्या पैदा करते हैं, जो 6b, तदुपरान्त 3 को प्रेषित हो जाते हैं, जिसके कारण उच्च रक्तचाप हो जाता है। कुछ 7 को भी चले जाते हैं जो उसके ऊपर विपरीत प्रभाव डालते हैं। 6 के अग्न्याशय को नियंत्रित करने के कारण, पाचनात्मक समस्यायें पैदा हो जाती हैं। 7b (अन्य चक्रों के साथ- साथ) रीढ़ की हड्डी को नियंत्रित करता है, अतएव रीढ़ की हड्डी की समस्यायें पैदा हो जाती हैं।
(च) पैरों को ऊर्जा
p के द्वारा मिलती है, अतएव पैरों को शक्ति पहुंचाने के लिए Tp आवश्यक है।
(छ) जैन्सिंग ( Gensing) यह अंगों को साफ, सक्रिय तथा ऊर्जित करता है । इसका वर्णन आगे अध्याय ३२ में किया है।
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