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परिणाओं को पाने के लिए अप्रभावित चलों का भी करें, किन्तु 3 और 5 का C करें, किन्तु E प्रत्येक केस में निर्धारित करना पड़ेगा ।
उन्नत प्राण शक्ति उपचार में यह जानना ज्यादा आवश्यक है कि अमुक चक्र अथवा अमुक रोग की ऊर्जा क्यों इस्तेमाल की जानी है, बजाय विधियों को याद करके या रटने के। इससे ऊर्जाओं को वांछित निर्देश देने में सहायता मिलती है। अच्छे प्रकार से तेज गति से उपचार करने के लिये, कुशलता आवश्यक है। निम्न क्रियायें आवश्यक हैं:
(क) रोगी की देखने से जांच करें।
(ख) रोगी से पूछताछ करें एवम् सम्बन्ध स्थापित करें।
(ग) मुख्य चक्रों, संबंधित चक्रों, प्रमुख अंगों, रीढ़ की हड्डी और AP की अच्छी तरह से जांच करें। प्रभावित चक्र AP से दूर भी हो सकता है। अच्छी जांच उचित उपचार के लिए अति महत्वपूर्ण है।
(घ)
GS (कई बार )
(ङ) रोगी से कहें कि वह शांति से मन ही मन बार-बार कहें कि मैं उपचारी ऊर्जाओं को पूरी तौर पर ग्रहण करता हूं।
C (AP), यदि वह घना हो तो ।
C के बाद E (AP), यदि उस पर खोखलापन हो तो ।
(ज) यदि प्रभावित चक्र अधिक सक्रिय हो, तो C' और उसको E B की सहायता से संकुचित करें ।
(च)
(झ) यदि प्रभावित चक्र कम सक्रिय हो, तो लिये ER से तथा उच्च चक्रों के लिये उपचार के लिये उचित रंग की ऊर्जा द्वारा प्रयोग करें। यदि आप निश्चित नहीं है, तो सामान्य रोगों में w तथा गंभीर रोगों में GV का उपयोग करें।
उपचार की गति बढ़ाने के लिए T
(ञ)
(ट)
C' और उसको निम्न चक्रों के EV से सक्रिय करें।
५.२१०
( अप्रभावित चक्रों) भी करें।