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रहे। वृद्ध लोग आवश्यक्तानुसार सप्ताह में एक या दो बार तथा युवा व्यक्ति ज्यादा समय बाद कर सकते हैं। (क) GS (२) (ख) C' (8, 1-सामने, बगल तथा पीछे से, पेट और अग्न्याशय पर)/E6
W
(ग) C ( 11, 10, 9, bh, मस्तिष्क के बाएं तथा दाएं भाग, आंखों और
कानों पर)/E( 11, 10, 9, bhjw (घ) C' (j. 8, 8', गर्दन के पीछे)/E (j, 8, 8')w (ङ) C' {7, Lu– सामने, बगल और पीछे) 1E7bw (च) C' 5 (छ) C (K- दाएं तथा बाए, 3) (ज) C रीढ़ की हड्डी) (झ) C' (4, पैर का निचला भाग)/E4w (अ) c2/Ew (ट) C' 1/E W (ठ) C' (दोनों पैरों पर, h, k, S)/E (h, k, S) W-s का
स्थिरीकरण न करें। (ड) (दोनों बाहों पर, a, e, H) E (a, e, H) w - H का स्थिरीकरण
न करें।
(११) प्राणशक्ति उपचार के महत्वपूर्ण चरण
रोग के बाह्य कारण तथा आन्तरिक कारण (जैसे नकारात्मक भावनाएं)– दोनों का ही ध्यान रखना चाहिए। निम्न भावनाओं का केन्द्र होने के कारण T 6 आवश्यक है। हृदय को भी सक्रिय करना जरूरी है, जिससे आन्तरिक शान्ति मिलती है। रोगी को तनाव न करके तथा अपनी भावनाओं के नियन्त्रण द्वारा सहयोग प्रदान करना चाहिए। सहज (simple) प्रकार का ध्यान भी सहायक होता है।
किसी भी अंग के ठीक होने की गति न सिर्फ कि संबंधित. बल्कि अन्य चक्रों के व अंगों के स्वस्थता के स्तर पर निर्भर करती है। इसलिये बेहतर
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