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________________ लिए यह पूरक उपचार के तौर पर भी की जाती है। सही रोगी पर उपचार करने से कुछ केसों में चमत्कार सा हो जाता है। आवश्यक नोटGS: C (मुख्य चक्रों); C (मुख्य अथवा प्रभावित लघु चक्रों / आन्तरिक अंगों पर) इस तकनीक के प्रयोग से पहले या बाद में आवश्यक है। इससे विपरीत प्रक्रिया नहीं हो पाती। इस तकनीक को मात्र अनुभवी व कुशल उपचारक ही करें न कि नये उपचारका उपक्रम (३४) सम्पूर्ण शरीर में दर्द- Aching of Whole Body (क) 11- ओजस्वी ऊर्जा प्रदान करने, अस्थि तथा मांसपेशियों के तंत्रों को शक्ति प्रदान करने एवम् प्रतिरक्षात्मक तंत्र को सुदृढ़ करने हेतु। (ख) हालत को देखते हुए, निम्न उपचार अथवा उपचारों को, यदि उचित समझें तो करें : (१) उक्त उपक्रम (२८) में वर्णित आंतरिक अंगों की सफाई (२) उक्त उपक्रम (२६) में वर्णित 6 की सफाई (३) उक्त उपक्रम (३०) में वर्णित रक्त की सफाई (४) अध्याय १० के क्रम (१) में वर्णित प्रतिरक्षात्मक तंत्र को मजबूत करना (ग) जांच के फलस्वरूप, अन्य कोई उपचार जिसकी आवश्यक्ता हो। उपक्रम (३५) निवारक प्राण शक्ति-- Preventure Pranic Treatment जैसे-जैसे मनुष्य वृद्ध होता जाता है, उसके चक्र कमजोर होते जाते हैं। और उनमें खोखलापन हो जाता है। इस कारण से शरीर व उसके अंगों का धीरे-धीरे पतन होने लग जाता है। अपने स्वास्थ्य सुधारने, तनाव कम करने और वृद्धत्व की गति कम करने के लिए, यह सलाह दी जाती है कि वह नियमित तौर पर निवारक प्राणशक्ति उपचार करवाता रहे अथवा स्वयं करता ५.२०८
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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