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(ग) E6f 0- यह रोगग्रस्त ऊर्जा को खदेड़ने के लिए है। इस प्रक्रिया
को मात्र अनुभवी उन्नत प्राणशक्ति उपचारक करें। यदि रोगी को दस्त
हों अथवा मांस से खून बह रहा हो इस प्रक्रिया को न करें। (घ) C71 E 7b Gv' इससे थाइमस ग्रंथि सक्रिय होती है जिससे
संक्रमण पर आक्रमण में सहायता मिलती है। (ङ) C Lul ELL (Lub के माध्यम से) Go - ऐसा करते समय उक्त
उपक्रम ३० (ग) में वर्णित सावधानी बरतें। यह प्रक्रिया रक्त को शुद्ध
करने व फँफड़े के संक्रमण हटाने के लिए अच्छी है। (च) 05 (छ) c (पेट का निचला हिस्सा, 4) (ज) E4GBV- यह शरीर को ताकत देने व आंतों के संक्रमण दूर करने के
लिए है। यदि आंतों से रक्तस्त्राव हो, तो F G न करें। (झ) c 1 (ञ) C (H, S)/ E V - इससे सफेद रक्त कोशिकायें अधिक उत्पादित
होती हैं। इस प्रक्रिया को उसी दिन न दोहरायें, अन्यथा रोगी पर
विपरीत प्रक्रिया हो सकती है। प्रेषित ऊर्जा का स्थिरीकरण न करें। (ट) C (11, 10, 9, bh, j, 8 )/ E GBV (8) शिशुओं व छोटे बच्चों के केस में, समस्त उपचार W द्वारा करें। GS
ज्यादा होना चाहिए तथा E धीरे-धीरे नाजुकपने से करना चाहिए) (ड) उपचार को दिन में २ या ३ बार दोहरायें। यदि फिर भी बुखार बना
रहता है, तो मैडिकल डाक्टर तथा उन्नत प्राणशक्ति उपचारक में तुरन्त मिलने के लिए कहें।