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________________ (ङ) उपचारक द्वारा अपनी ऊर्जा स्तर बढ़ाना (च) रोगी की जांच करना (छ) जांच का विश्लेषण करना आवश्यक्तानुसार Gs करना आवश्यक्तानुसार T करना। बीच-बीच में जांच करते रहना। T के पश्चात भी जांच करना और यदि आवश्यक हो, तो उचित न करें। ऊर्जाओं को ऊर्जन के पश्चात् स्थिरीकरण (stabilization) करते रहना, सिहाय Hधाकों पर। स्थिरीकरण किये गये चक्रों तथा अंगों को हल्के नीले रंग की ऊर्जा द्वारा दृश्यीकृत करते हुए सील (seal) करना। उपचारक द्वारा उसके और रोगी के मदद की वायवी डोर (etheric cord) को वायवी तरीके से काटना। (ठ) उपचार के मध्य में तथा अन्त में अपने दोनों बाहों की वायवी सफाई (ड) रोगी तथा उपचारक द्वारा ईश्वर को धन्यवाद देना (ढ) उपचारक तथा रोगी द्वारा उपचार के बाद दिये गये निर्देशों का पालन करना। (ण) उपचार के अन्त में उपचारक द्वारा अपने दोनों बांहों को नमक के पानी से धोना, फिर कीटनाशक साबुन से धोना। उपचार में रंगीन ऊर्जा का कितने समय तक इसका कोई स्पष्ट उत्तर नहीं है। यह उपचारक के स्व-विवेक पर आश्रित है। इसमें रोगी की हालत, रोग की तीव्रता, AP द्वारा ऊर्जा का ग्रहण, उपचारक की योग्यता, उपचारक का ऊर्जा स्तर आदि। कुछ उपचारक तीव्रता एवम् शीघ्रता से उपचार करते हैं, कुछ मामूली तौर पर एवम् धीरे-धीरे | उन्नतशील उपचार जिनकी ऊर्जा गूढ है, किसी चक्र को कुछ ही सैकिन्डों में ऊर्जित कर . देते हैं। कभी-कभी रंगीन ऊर्जा को मात्र ३ या ४ सैकिन्ड के लिये ही प्रेषण (४) ५.१८७
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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