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________________ इकट्ठा करके निस्तारण हेतु फेंक दें। इसको कई बार दोहरायें, जब तक आप निश्चिंत न हो जायें कि निकाली गई रोगग्रस्त ऊर्जा पूरे तौर पर फैंक दी गयी है। (७) EG रोगी को ठीक (heal) करने तथा शक्ति प्रदान करने के लिए (E) E B रोगी को सकून पहुंचाने और दर्द में आराम पहुंचाने के लिए (6) ऊर्जा का स्थिरीकरण करें। नोट-० को नाजुक क्षेत्र में उपयोग न करें। इनमें v का प्रयोग करें। 1, 2, p. h, k, s, a, e, H को 0 द्वारा तथा 4, 6, 7, 8, 8', j, t, bh, 9. 10, 11 को v द्वारा ऊर्जित करना चाहिए (0 के स्थान पर) सावधानी- 4 को ऊर्जित करने से पहले दो बार सोचें, क्योंकि यह डायरिया में खतरनाक हो सकता है तथा किन्हीं परिस्थितियों में पतले दस्त हो सकते हैं। 3 तथा 5 के केस में C Gv, किन्तु E न करें। (च) शीघ्र ऊर्जन ऊक्त (ख) के अनुसार, किन्तु हाथ/हाथों को घड़ी की दिशा में घुमाना पड़ेगा। नियम व पद्धतियां प्रारम्भिक प्राणशक्ति उपचार एवम् माध्यमिक प्राणशक्ति उपचार में जो नियमादि वर्णित हैं, वे सभी लागू होते हैं। मात्र उपचार की तकनीकियों में सुधार अथवा उन्नत होता चला गया है, ताकि उपचार की गुणवत्ता अधिक हो तथा उपचार में समय कम लगे। उपचार में विधियां पुनः सहज सन्दर्भ हेतु निम्न वर्णित हैं:(क) रोगी की प्राणशक्ति उपचार ग्रहणशीलता सुनिश्चित करना। (ख) उपचारक द्वारा द्वि-हृदय पर ध्यान-चिंतन करना एवम् सच्चारित्र का पालन करना (ग) उपचारक द्वारा दिये गये निर्देशों का पालन सुनिश्चित करना (घ) रोगी तथा उपचारक द्वारा ईश्वर से प्रार्थना करना । 1१८६
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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