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________________ (च) मनोवैज्ञानिक अथवा आध्यात्मिक गुणआत्मा से संबंधित, आत्मोन्नति (छ) मनो रोगों में उपयोग - आत्मोन्नति हेतु। उदाहरण के तौर पर जो हमेशा केवल धन के बारे में सोचते हैं, उनकी सोच को परिवर्तित करने के लिए। (ज) चक्रों का उपचार धीमे चलने की दशा में उच्च चक्रों को तेज गति से चलाने के लिए एवम् यदि उनके छोटे आकार हो गये हों तो उनको बड़ा करने हेतु, जिस प्रकार द्वारा निम्न चक्रों का किया जाता है- अर्थात 6, 7, 8, 9, 10, 11 पर। नोट- मनोरोगों में साधारणतः नकारात्मक विचार, सोच के आकार तथा नकारात्मक परजीवियों को नष्ट करने के लिए विद्युतीय बैंगनी ऊर्जा (ev) द्वारा सफाई की जाती है, तथा ev द्वारा ऊर्जन किया जाता है। उपचारक द्वारा समुचित मात्रा में ev न ग्रहण करने की दशा में v द्वारा उपचार किया जा सकता है, किन्तु इसका प्रभाव उतना अधिक नहीं होगा जितना कि ev का होता है। (ञ) सावधानी - (१) कभी भी v तथा R का एक साथ प्रेषण न कीजिए क्योंकि इसका प्रभाव नष्टकारक होता है। इसके द्वारा कुछ कोशिकाएं ऊर्जित होकर, अत्यधिक गर्म होकर बढ़कर फट सकते हैं। कभी भी 7 तथा 0 का एक साथ प्रेषण न कीजिए क्योंकि इसका प्रभाव अत्यन्त नष्टकारक होता है। कुछ ऊर्जित कोशिकाएं फट सकती हैं।
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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