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(ज) संज्ञा
जिनसे संक्लेशित होकर जीव इस लोक में और जिनके विषय का सेवन करने से दोनों ही भवों में दारुण दुःख को प्राप्त होते हैं उनको संज्ञा कहते हैं। संज्ञा नाम वाञ्छा का है। जिसके निमित्त से दोनों ही भवों में दारुण दुःख की प्राप्ति होती है, उस वांछा को संज्ञा कहते हैं। उसके चार भेद हैं- आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा और परिग्रह संज्ञा। क्योंकि इन आहारादिक चारों ही विषयों की प्राप्ति और अप्राप्ति दोनों ही अवस्थाओं में यह जीव संक्लिष्ट और पीड़ित रहा करता है। इस भव में भी दुःखों का अनुभव करता है और उसके द्वारा अर्जित पाप कर्म के उदय से परभव में भी सांसारिक दुःखों को भोगता है। इन संज्ञाओं के निम्नवत कारण होते हैं : संज्ञा | बाह्य कारण बाह्य कारण बाह्य कारण अंतरंग कारण | | आहार संज्ञा किसी उत्तम आहार | पूर्वानुभूत भोजन | पेट के खाली हो | असाता वेदनीय को देखना | का स्मरण होना । जाने से | कर्म का तीव्र
उदय एवं
उदीरणा भय संज्ञा अत्यन्त भयंकर पहले देखे हुए शक्ति के हीन | भय कर्म का पदार्थ का देखना | भयंकर पदार्थ होने पर तीन का स्मरण
उदय-उदीरणा
होना मैथुन संज्ञा | कामोत्तेजक, | काम कथा, | कुशील का। वेद कर्म का।
स्वादिष्ट, गरिष्ट, नाटक आदि का सेवन, कुशीली | तीव्र उदय या रसयुक्त पदार्थ का | सुनना एवं पहले पुरुषों की संगति | उदीरणा आदि भोजन करने से के भुक्त विषयों गोष्ठी आदि
का स्मरण आदि | करना
करना | परिग्रह संज्ञा | इत्र, भोजन, उत्तम | पहले के भुक्त ममत्व परिणामों | लोभ कर्म का
| वस्त्र, स्त्री, धन, पदार्थों का | के परिग्रहाद्यर्जन | तीव्र धान्य आदि स्मरण या उनकी | की तीव्र गृद्धि के | उदय-उदीरणा भोगोपभोग के कथा का श्रवण | भाव होना साधनभूत बाह्य | आदि करना पदार्थों का देखना
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