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(छ) प्राण
जिनके सदभाव में जीव में जीवितपने का, वियोग होने पर मरणपने का व्यवहार हो, उनको प्राण कहते हैं। प्राण और पर्याप्ति में कार्य और कारण का अन्तर है। प्राण दस प्रकार के होते हैं :पांच इन्द्रिय प्राण- स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षुः, श्रोत्र। तीन बल प्राण-मनोबल, वचनबल, काय बल । एक श्वासोच्छवास तथा एक आयु। वीर्यान्तराय और अपने-अपने योग्य मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न होने वाले मनोबल और इन्द्रिय प्राण, निज और पर पदार्थों को ग्रहण करने में समर्थ लब्धिनामक भावेन्द्रिय रूप होते हैं। इस ही प्रकार अपने-अपने पूर्वोक्त कारण से उत्पन्न होने वाले कायबलादिक प्राणों में शरीर की चेष्टा उत्पन्न करने की सामर्थ्यरूप कायबल प्राण, श्वासोच्छ्वास की प्रवृत्ति में कारण भूत शक्तिरूप श्वासोच्छ्वास प्राण, वचन व्यापार को कारणभूत शक्तिरूप वचोबल प्राण तथा नरकादि भव धारण करने की शक्तिरूप आयु प्राण होता है। प्राण इस प्रकार होते है:जीव पर्याप्त
अपर्याप्त एकेन्द्रिय जीव स्पर्शन, काय बल, श्वासोच्छवास, | स्पर्शन, कायबल, आयु
आयु द्वीन्द्रिय जीव स्पर्शन, रसना, वचन बल, काय बल. स्पर्शन, रसना, कायबल, श्वासोच्छवास, आयु
| आयु त्रीन्द्रिय जीव | स्पर्शन, रसना. घ्राण, वचन बल. काय स्पर्शन, रसना, घ्राण, बल, श्वासोच्छवास, आयु
कायबल, आयु चतुरिन्द्रिय स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु, वचन बल, | स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु जीव
काय बल, श्वासोच्छवास, आयु कायबल, आयु असंज्ञी पांचों इन्द्रिय, वचन बल, काय बल | पांचों इन्द्रिय, कायबल, आयु पंचेन्द्रिय जीव | श्वासोच्छवास, आयु संज्ञी पंचेन्द्रिय पांचों इन्द्रिय, तीनों बल,
पांचों इन्द्रिय, कायबल, आयु जीव श्वासोच्छवास, आयु
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