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________________ एक लब्ध्यपर्याप्तक जीव यदि निरन्तर जन्म मरण करे तो अन्तर्मुहर्त काल में ६६३३६ जन्म और उतने ही मरण कर सकता है, इससे अधिक नहीं। इन भवों में से प्रत्येक का काल प्रमाण श्वास का अठारहवां भाग है। फलतः त्रैराशिक के अनुसार ६६३३६ भवों के श्वासों का प्रमाण ३६८५- उच्छवास होता है। इतने उच्छवासों के समूह प्रमाण अन्तर्मुहूर्त में पृथ्वीकायिक से लेकर पंचेन्द्रिय तक लध्यपर्याप्तक जीवों के क्षुद्रभव ६६३३६ हो जाते है। ध्यान रहे ३७७३ उच्छवासों का एक मुहूर्त होता है। . उक्त भवों का खुलासा इस प्रकार है: स्थूल पृथ्वीकादिक ६, ०१२ भव सूक्ष्म " " ६, ०१२" स्थूल जलकायिक ६. ०१२ " सूक्ष्म " " ६, ०१२ " स्थूल अग्निकायिक ६, ०१२" ६. ०१२ " स्थूल वायुकायिक ६, ०१२ " ६, ०१२" स्थूल साधारण वनस्पतिकायिक ६.०१२ " __६, ०१२" ६६,१३२" - ० प्रत्येक वनस्पतिकायिक समस्त एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय पचेन्द्रिय ४० २४ कुल ६६.३३६ भव १.५०
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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