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और इस्तेमाल की हुई ऊर्जा को खींचना, निकालना और उसकी सफाई करने के काम G के द्वारा अवश्य किया जाता है। ढीला करने के पश्चात रोगग्रस्त जीव द्रव्य पदार्थ का स्थानीय झाड़-बुहार द्वारा सफाया किया जाता है। तब उसके बाद ही प्रभावित चक्र / अंग को ऊर्जित किया जाता है।
जिद्दी किस्म की रोगग्रस्त ऊर्जा को किसी खास चक्र/क्षेत्र से ढीला करने और खदेड़ने में 0 का इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि ७ पूर्णतया प्रभावी नहीं होता। इसलिये ० की तीव्र शक्ति होने के कारण, G का पहले उपयोग किया जाता है। किन्तु 0 के नष्टकारी प्रभाव को किसी खास जगह या चक्र में सीमित करने के लिए यह आवश्यक है कि G और 0 के ऊर्जन से पहले उस जगह या चक्र को नीले रंग की ऊर्जा से ऊर्जित किया जाये जिसकी तीव्रता 6 और 0 से थोड़ा सी ज्यादा गहरी हो और/अथवा ऊर्जन का समय G
और 0 के ऊर्जन के समय से थोड़ा सा अधिक हो। इस प्रकार के केसों में निम्न विधि प्रयोग में लाई जायेगी। (१) CG (२) E B, इसके अतिरिक्त B को यह भी निर्देश दिया जाना चाहिए कि इसके बाद प्रेषित की जाने वाली नष्टकारी ऊर्जा द्वारा ऊर्जित किये जाने के फलस्वरूप उसके हानिकारक प्रभाव से प्रभावित चक्र/ अंग की रक्षा करें। (3) E G- to decongest, disinfect and loosen the diseased and used up energy (रोगग्रस्त तथा इस्तेमाल की हुई ऊर्जा का घनापन हटाना, निकालना और ढीला करना), संक्षेप में -- DDL (8) E O to further loosen and expel the diseased and used up energy रोगग्रस्त ऊर्जा और इस्तेमाल की हुई ऊर्जा को और अधिक ढीला करना और खदेड़ना ), संक्षेप में इस FLE. इस सबको हम C GIE BGO द्वारा लिख सकते हैं।
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