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________________ यह महसूस करने के बाद कि आपके ब्रह्मचक्र में ऊर्जा प्राप्त हो रही है, उसे • हाथ अथवा उंगली चक्र से प्रेषित करें। (घ) उक्त दोनों केसों में, आप यह न सोचें कि ग्रहण किये जाने वाले चक्र से प्रेषण किये जाने वाले चक्र के लिये ग्रहीत ऊर्जा शरीर के अन्दर किस मार्ग से गुजर रही है। (ङ) प्रत्येक रंगीन ऊर्जा से ऊर्जन करने के बाद वायवी तरीके से दोनों बाहें साफ करें, तभी दूसरी रंगीन ऊर्जा से ऊर्जन करें अन्यथा दो रंगों के संभावित मिश्रण से रोगी को हानि पहुंच सकती है। इसी प्रकार रंगीन ऊर्जा से सफाई करने के बाद बांहें, धोना आवश्यक है। (च) प्राण की एक अपनी चेतना (consciousness) होती है। जिस समय आप उसको प्रेषित करें, तो इच्छा करें एवम् उससे निवेदन करें कि वह अमुक रोगी के अमुक चक्र अथवा अमुक अंग अथवा अमुक चक्र द्वारा अमुक अंग में जाकर अमुक कार्य करे। इसको तीन बार करें। फिर इसको दृश्यीकृत भी करें कि तदनुसार प्राण ऊर्जा कार्य कर रही है। रंगीन प्राण का उपयोग उपचारक की इच्छा के अनुसार सीमित किया जा सकता है एवम् उसका प्रभाव बढ़ाया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर किसी चक्र या अंग को नीले रंग द्वारा प्रतिबंधित किया जा सकता है। नीले रंग द्वारा उस चक्र को छोटा किया जा सकता है, तथा उसके द्वारा किसी चक्र या अंग के चारों ओर एक घेरा सा बनाया जा सकता है ताकि दूसरे रंग की ऊर्जा उस घेरे के बाहर न जाये। इसके लिए नीले प्राण का रंग, उस दूसरे रंग की ऊर्जा से जरा सा अधिक गहरा होना चाहिए अथवा इस नीले रंग की ऊर्जा के प्रेषण का समय उस दूसरे रंग की ऊर्जा के प्रेषण के समय से थोड़ा सा अधिक होना चाहिए एवम् नीले रंग की ऊर्जा को इस बारे में स्पष्ट निर्देश देने चाहिए। लाल रंग की ऊर्जा द्वारा चक्र के आकार को बढ़ाया जाता है। इस सम्बन्ध में इसका कार्य नीले रंग की ऊर्जा से विपरीत है। ५.१५४
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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