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सहायता मिलती है अथवा सकारात्मक भावनाएं जीव द्रव्य शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डालती है। किन्तु प्रभावित अंग पर दुबारा ध्यान देने से
रोगग्रस्त जीव द्रव्य पदार्थ जो विमुक्त हो गया था, दुबारा आ जाता है। (१०) विपथन या मुक्त करने का नियम
(क) मन और शरीर को आराम देने से स्व-उपचार में सहायता मिलती है। (ख) जीवद्रव्य शरीर मन और भावनाओं द्वारा जल्दी ही प्रभावित होता है।
इसलिए जो भी चीज जिसमें सकारात्मक भावनाएं होती हैं, वे जीवद्रव्य शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं। अपना ध्यान किसी मनमोहक या अच्छी वस्तु पर लगाने से रोगग्रस्त जीवद्रव्य पदार्थ शरीर से मुक्त हो जाता है या उसकी स्थिति कमजोर हो जाती है। इससे शरीर को स्वयं ही अच्छी तरह उपचार करने में सहायता मिलती है। इसी कारण भूरा पदार्थ कम हो जाता है और उसका रंग हल्का हो जाता है ! ऐसा देखा गया है कि जब रोगी अपना ध्यान दर्द की ओर लगाता है तब रोगग्रस्त जीवद्रव्य पदार्थ उसी स्थान
पर जाता है। यह स्थिति उपचार में देरी का कारण बनती है। (घ) AP पर दुबारा ध्यान देने पर रोगग्रस्त जीवद्रव्य पदार्थ फिर से आ
जाता है और AP पुनः भूरा हो जाता है। (११) स्व-उपचार की समग्र राह
(क) पांच से दस मिनट तक शारीरिक कसरत करें। (ख) स्व-प्राणशक्ति उपचार करें। (ग) स्व-प्राणशक्ति जुटाने या जमा करने के लिए कुछ मिनट तक उस चक्र
और अंग के लिए शारीरिक कसरत करें। ऐसा शरीर के उस भाग को हिलाकर, मोड़कर, दबाकर, खींचकर या झुकाकर किया जा सकता है जहां वह चक्र स्थित है और बाद में जिसकी सफाई व ऊर्जन किया जाता है।
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