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________________ i T i शरीर के कुछ भागों में प्राणशक्ति के धनेपन से बचा जा सकता है । परामर्श- अपने स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए उक्त प्रकार के ध्यान चिंतन की यह प्रक्रिया प्रतिदिन करना चाहिए। यह प्रक्रिया गूढ़ विज्ञान के विद्यार्थियों द्वारा उन कार्य से पहले की जाती है, जिसमें अधिक प्राणशक्ति की जरूरत होती है। आप ध्यान - चिंतन की इस प्रक्रिया को बहुत लोगों के उपचार से पहले कर सकते हैं। एक बार इस ध्यान प्रक्रिया में कुशल हो जाते हैं तब आप स्वयं ही यह महसूस करेंगे कि आपके शरीर में एक प्रकार की चमक आ गई है। आपको ऐसा लगेगा मानो अधिक मात्रा में बिजली आपके शरीर में और शरीर के बाहर दौड़ रही है । आप अतिरिक्त प्राणशक्ति का उपयोग 4 पर कई मिनट तक ध्यान लगाकर, कृत्रिम प्राणशक्ति या नाभि प्राणशक्ति को पैदा करने में कर सकते हैं। आप इस नाभि प्राणशक्ति को नाभि से डेढ़-दो इंच नीचे स्थित तीन छोटे नाभि चक्रों में जमा करें। ऐसा आप तीन मिनट तक इस भाग पर ध्यान चिंतन करके कर सकते हैं। इन निर्देशों के साथ PB भी करना चाहिए । प्रत्येक लघु नाभिचक्र में नाभि प्राणशक्ति जमा करने के लिए बड़े लचीले शिरोबिन्दु होते हैं अर्थात ये तीन लघु नाभि चक्र कृत्रिम प्राणशक्ति के लिए भण्डार-घर के रूप में काम करते हैं। ये लघु नाभि चक्र प्राणशक्ति के सागर कहलाते हैं क्योंकि ये कृत्रिम प्राणशक्ति से भरे होते हैं । इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कृत्रिम प्राणशक्ति, प्राणशक्ति से भिन्न होती है। यह नाभि चक्र द्वारा समन्वित होती है और दूधिया सफेद, हल्के लाल, सुनहरे पीले तथा अन्य रंगों की हो सकती है। इसका आकार और घनत्व अलग होता है। आध्यात्मिक व्यक्तियों के अपेक्षा सामान्य व्यक्तियों में कृत्रिम प्राणशक्ति बहुत कम होती है । आपको सफेद प्रकाश पर ध्यान - चिंतन करने और प्रतिदिन उसका अभ्यास करने की सलाह दी जाती है। इससे आपका जीव द्रव्य शरीर साफ, चमकदार और अधिक घना होता है। इससे आपको एक अच्छा उपचारक बनने में सहायता मिलती है । ५.१३४
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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