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अंग चमकदार होते जा रहे हैं। समुचित आराम मिलने तक इस प्रक्रिया
को दोहराते रहें! इस पद्धति को चक्रों द्वारा श्वसन पद्धति कहते हैं। (ग) धीरे-धीरे सांस बाहर छोड़ने के बदले आप तेजी से और जोर लगातार
एक आवाज के साथ या बिना आवाज के सांस बाहर छोड़ सकते हैं। सांस को मुंह के द्वारा बाहर छोड़ना चाहिए। साथ ही यह महसूस करना चाहिए कि भूरा रोगग्रस्त पदार्थ चक़ के माध्यम से पीड़ित अंग
द्वारा बाहर फैंका जा रहा है। (घ) उक्त (क), (ख) या (ग) में वर्णित प्रक्रिया करने के बाद यदि आप चक्र
या प्रभावित अंग पर कुछ भारीपन या प्राणशक्ति का घनापन महसूस कर रहे हों तो साधारण सांस लेकर बाहर छोड़ते हुए प्राणवायु को चक्र और उससे संबंधित अंग से बाहर निकलते हुए महसूस करें। चक्र को हल्का होते हुए महसूस करें। यह प्रक्रिया तब तक करें जब तक स्थिति
सामान्य नहीं हो जाती। (ङ) चक्रों द्वारा श्वसन पद्धति बहुत ही लाभदायक है और सामान्य रोगों में
तुरन्त ही आराम मिलता है। इस पद्धति को अधिक करने से चक्र या/ और संबंधित अंग पर प्राणशक्ति का घनापन बढ़ जाता है, जिससे कुछ समय बाद उसका नकारात्मक प्रभाव पड़ने के कारण मानसिक व शारीरिक रोग हो सकते हैं। यह एक प्रकार से अधिक शक्तिवर्द्धक दवा लेने के समान हैं। इसलिए इस पद्धति को मात्र संतुलित रूप से ही करना चाहिए। सिर के सभी चक्र, 7 और आंख के चक्रों द्वारा श्वसन प्रक्रिया करते समय सावधानी रखनी चाहिए क्योंकि इनसे संबंधित अंग बहुत नाजुक होते हैं और इन पर आसानी से प्राणशक्ति का घनापन हो सकता है। 3. 1, 5 पर चक्र श्वसन प्रक्रिया को अच्छे, कुशल, प्रशिक्षित उपचारक के बिना नहीं करें, अन्यथा पूरे शरीर में कमजोरी आ सकती है, रक्तचाप
बढ़ सकता है या पूरे शरीर में एलर्जी हो सकती है। (छ) गर्भवती महिलाएं 1, 2, 3, 4, 5 पर चक्र श्वसन प्रक्रिया न करें,
अन्यथा उनकी दशा और अधिक बिगड़ सकती है।
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